Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [११७. गुणाणमासओ दव्ये, एगदम्वस्तिया गुणा। लक्खणं पजवाणं तु उभो अस्सिया भवे ॥६॥ धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गलजन्तवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ ७ ॥ धम्मो अहम्मो अागासं, दव्वं इक्किकमाहियं । अणन्ताणि य दव्याणि, कालो पुग्गल जन्तवो ॥ ८॥ गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणो। भाय सम्वदवा, नहं ओषाहलक्खणं ॥ ९॥ . वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो। . नाणेणं दसणेशं च, सुहेण य दुहेण य ।। १० ।। नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवयोगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥ ११॥ सहन्धयार-उजोरो, पहा छायातवे इ वा। वरणरसगन्धफासा, पुग्गलाण तु लक्खणं ।। १२ ।। .. एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं ।। १३ ।। जीवाजीवा य बन्धो य, पुराण पावासवो तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो, सन्तए तहिया नव ॥ १४ ॥ तहियावं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं । भावेणं सद्दहन्तस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ १५॥ .. निसरगुवएसरुई, प्राणरुई सुत्तबीयरुइमेव ! अभिगमवित्थाररुई, किरिया-संखेव-धम्मरुई ॥ १६॥ भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुरणपावं च । सहसम्मइयासवसंवरो य रोएइ उ निस्सग्गो ।। १७ ।। जो जिणदिढे भावे, चउबिहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, स निसग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥ १८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256