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[श्रीउत्तराध्ययनसूत्र
रागदोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे। जे भिक्खू रंभइ निञ्च से न अच्छई मण्डले ॥३॥ दण्डाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्व चयइ निच्चं, से न अच्छह मण्डले ॥४॥ दिव्वे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ।। ५ ॥ विगहाकसायसन्नाणं झाणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खू वजई निशं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ६ ॥ वएसु इन्दियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ७ ।। लेसासु छसु काएसु छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मण्डले ।।८।। पिण्डोग्गहपडिमासु, भयट्ठाणेसु सत्तसु। जे भिक्खू जयई निच्च. से न अच्छइ मण्डले ।। ९ ।। मदेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे । जे भिक्खु जयई निच्च, से न अच्छइ मगडले ॥ १० ॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ॥ ११ ।। किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु ग । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ.मण्डले ॥ १२ ॥ गाहासोलसएहि, तहा असंजमम्मि य । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ।। १३ ।। बम्भम्मि नायज्झयणेसु, ठाणेसु य ऽसमाहिए । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छा मण्डले ॥ १४॥
१. गच्छद । २. य तहेव य ।