Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र
[१६७
वरण श्रो परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया। किराहा नीला य लोहिया, हलिद्दा सुक्किला तहा ॥ १७ ॥ गन्धो परिणवा जे उ, दुविहा ते वियाहिया। सुभिगन्धपरिणामा, दुब्भिगन्धा तहेव य ।। १८ ।। र सओ परिणाया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया। तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा ॥ १९ ।। फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया। कम्खडा मउआ चेव, गरुया लहुअा तहा ॥ २० ।। सीया उराहा य निद्धा य, तहा लुक्खा य ग्राहिया। इय फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ।। २१ ।। संठाणो परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया ॥ २२ ॥ वरणओ जे भत्रे किरहे, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणोवि यः ॥ २३ ॥ वरणओ जे भवे नीले, भइए से उ गन्धयो । रसग्रो फासो चेव, भइए संठाणोवि य ॥ २४ ॥ वरणणो लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासयो चेव भइए संठ गोवि य ॥ २५ ॥ वराण ओ पीयर जे उ, भइए से उ गन्धो । रसओ फासो चेव, भइए संठाणमोवि य ॥ २६ ॥ वरणो सुक्किले जे उ, भइए खेउ गन्धो । रसो फासो चेव, भइए संठाणवि य ।। २७ ।। गन्धयो जे भये सुम्भी, भइए से उ वराण ओ । रस प्रो फासपो चेव, भइए संठाणोवि य ॥ २८ ॥ 'गन्धो जे भये दुभी, भइए से उ वरणओ । रसओ फोसओ देव, भदए संठाणोधि य ॥२६॥

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