Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
View full book text
________________
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र 1
तिराणेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया। दोच्चाए जहन्नण, एगं तु सागरोवमं ।। १६२ ।। सत्तव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहन्नण, तिराणेव सागरोवमा ॥ १६३ ॥ दस सागरोवमा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहणं, सत्तेव सागरोवमा ॥ १६४ ॥ सत्तरस सागर। ऊ, उक्कोरण वियाहिया । पंचमार जहन्नेण, दस चेव सागरोवमा ।। १६५ ।। बावीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया। छट्ठीए जहन्ने सत्तरस सागरोवमा ॥ १६६॥ तेत्तीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । खत्तमाए जहन्नण, बावीसं सागरोवमा ॥ १६७ ।। जा चेव य पाउठिई, नेरइयाणं वियाहिया । सा तेसिं काय ठिई, जहन्नुकोसिया भवे ॥ १६८ ।। अणन्तकालमुकोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नय। विजढस्त्रि सए काए, नेरइयाणं तु अन्तरं ।। १६९।। एपसिं वरणओ ऐव, गन्धो रसफासो । संठाणादेसो कावि, विहाणाई सहस्ससो ।। १७० ।। पंचिन्दियतिरिक्खाओ,
दुविहा ते वियाहिया। संमुच्छिमतिरिक्खाओ,
गम्भवक्कन्तिया तहा ॥ १७१ ॥ दुविहा ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा । नहयरा य बोधव्या, तेसिं मेए सुणेह मे ।। १७२ ।। मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य वोधव्वा, पंचहा जलयराहिया ॥ १७३॥

Page Navigation
1 ... 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256