Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
View full book text
________________
श्री उत्तराध्ययन सूत्र }
'ठिया
विश्वारिणो चैव पंचहा
जोइसालया ॥ २०७ ॥
वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कपोचगा य बोधव्या, कप्पाईया तहेव य ॥ २०८ ॥ कपोवा बारसहा, सोहम्मीसागगा तहा । सकुमारमा हिन्दा बम्भलोगा य लन्तगा ॥ २०६ ॥ महासुक्का सहस्सारा, आणया पाण्या तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥ २९० ॥ कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया |
गेवि जगाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ॥ २११ ॥ हेट्टिमाहेडिया चेव, हेट्ठिनामज्झिमा तहा । हेमा उवरिमा चेव, मज्झिमा हेट्ठिमा तहा ॥ २१२ ॥ मज्झिमामज्झिमा चेव,
तहा ।
उवरिमा हेट्टिमा
मज्झिमाउरिमा चेय, उवरिमामज्झिमा तहा ॥ २१३ उवरिमावरिमा चेव, तय गेविजगा सुरा । विजया वेजयन्ता य, जयन्ता श्रपराजिया || २१४ ॥ सव्वत्थसिद्धगा चेव, पंचहागुत्तरा सुरा । इमाणिया एऽ रोग हा एव पायो । २१५ ।। लोगस्स एगदेसम्म ते सच्चेवि वियाहिया ।
9
इत्तो कालविभागं तु, बुच्छं तेसिं चउवि ॥ २१६ ॥ संत पप्पS ईया, अपजब सियावि य । ठिषं पडुश्च साइया, सपज्जनसियाविय ॥ २१७ ॥
१. दिसाः ।
[ १८३

Page Navigation
1 ... 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256