Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ]
कालमन्तर्मुकोर्स, अन्तोमुहुंत्त जहन्नयं । विजढम्म सए काए, थलयराणं तु अन्तरं ।। १२६ ।। चम्मे उ लोमपक्खी य,
तया समुग्गपक्षिया ।
विययक्खी यबोधव्वा,
[ १८१
पक्खिणो य चउब्विद्दा ॥ ६८७ ॥
लोगे गदेसे ते सच्चे, न सम्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागतु, घोच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १८८ ॥ संतई पप्पाईया, अपजवसियावि य । ठि पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १८९ ॥ पलिओ मस्त भागो, असंखेजइमो भवे । आउटिई खहय, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १६० ॥ श्रसंखभाग पलियरस, उक्कोसेरा उ साहिया । पुव्व कोडी पुहते, अन्तो मुहुत्त जहन्निया ।। १६१ ॥ कायठिई खहयराणं, अन्तरे तेसिमे भवे । अन्तकालमुक्कसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १६२ ।। एसिं वरणओ बेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १९३ ॥ मया दुविहभेया उ. ते मे कित्तयओ सुरा । संमुच्छिमाय मण्या, गग्भवक्कन्तिया तहा ॥ १९४ ॥ भवन्तिया जे उ तिविहा ते वियाहिया । कम्प्रकम्मभूमा य, अन्तरद्दीवया तहा ।। १६५ ।। पश्नरस तीस विहा, भेया वीसहूं ।
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संखा उ कमसो तेसिं, इइ एसा वियाहिया ॥ १९६ ॥ संमुच्छिमारा एसेव, भेश्रो होइ वियाहिओ ।
लोगस्स एगदेसम्म ते सब्वे वि वियाहिया ॥ १९७ ॥

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