Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 247
________________ १८२ ] संत पण लाइया, अपजवसियावि य । ठिडं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥ १९८ ॥ पलिओ माइ तिणिवि, उक्कोसेण वियाहिया । उठिई मणुयाणं, ग्रन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १६६ ॥ पलिओम इं तिरिए उ, उक्कोसेण वियाहिया । पुग्वको डिपुहते, अन्तोमुडुतं जहन्नयं ॥ २०० ॥ काठई मयाणं, अन्तरं तेसिंग भवे । अन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥। २०१ ।। एएसिं वरणओ चेव, गन्धश्रो रसफासओ । संठाणा देसओ वावि, विहारा इं सहस्ससो ॥। २०२ ।। देवा चउग्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयओ सुरा । भोमिजवाणमन्तरजोइसवेमाणिया तहा ॥ २०३ ॥ दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०४ ॥ [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र असुरा दीवो हि दिसा नाग सुराणा, दिज्जू अग्गी वियाहिया । वाया, थणिया भवणवासिणो ॥ २०५ ॥ पिसायभूया जक्खा य, रक्खसा किन्नरा किंपुरिसा । महोरगा य गन्धव्वा, अविहा वाणमन्तरा ॥ २०६ ॥ चन्दा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा - तहा । .

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