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संत पण लाइया, अपजवसियावि य । ठिडं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥ १९८ ॥ पलिओ माइ तिणिवि, उक्कोसेण वियाहिया ।
उठिई मणुयाणं, ग्रन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १६६ ॥ पलिओम इं तिरिए उ, उक्कोसेण वियाहिया । पुग्वको डिपुहते, अन्तोमुडुतं जहन्नयं ॥ २०० ॥ काठई मयाणं, अन्तरं तेसिंग भवे । अन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥। २०१ ।। एएसिं वरणओ चेव, गन्धश्रो रसफासओ । संठाणा देसओ वावि, विहारा इं सहस्ससो ॥। २०२ ।। देवा चउग्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयओ सुरा । भोमिजवाणमन्तरजोइसवेमाणिया तहा ॥ २०३ ॥ दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०४ ॥
[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
असुरा
दीवो हि दिसा
नाग सुराणा,
दिज्जू अग्गी वियाहिया ।
वाया,
थणिया भवणवासिणो ॥ २०५ ॥
पिसायभूया जक्खा य,
रक्खसा किन्नरा किंपुरिसा । महोरगा य गन्धव्वा,
अविहा वाणमन्तरा ॥ २०६ ॥
चन्दा सूरा य नक्खत्ता,
गहा तारागणा - तहा ।
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