Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 245
________________ १८०] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र १७८ ॥ लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया | पत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ ९७४ ॥ संतई पप्पाइया, अपज्जवसिया चि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया विय ॥ १७५ ॥ एगा य पुव्त्रकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । आउटिई जलयां, अन्तोमुहुंत जहन्निया || १७६ ॥ पुव्वको डिपुहन्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया । काय ठिई जलयराणं, श्रन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ९७७ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्म सए काए, जलयरांरंग तु अन्तरं ॥ (एएसिं वरणओ चैव गन्धओ रसफासो । संठाणादेो वावि विहाणाई सहस्सओ ॥ ) चउपयाय परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउपया चउविहा उ, ते मे कित्तय सुण ।। १७६ ।। एगखुरा दुखुरा चेव, गण्डीपय सणहप्पया | हयना इगोणमाइ गयम इसी हमाइलो ।। १८० ॥ भुरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुबिहा भवे । गोहाई गहिमाई य, एक्केक्का रोगहा भवे ।। १६१ ॥ लोग देते ते सत्रे, न सव्वत्थ वियाहिया । एतो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउध्वि ॥ १८२ ॥ संत पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियाबि य ॥ १८३ ॥ पलिश्रोमाई तिथिग उ, उक्कोसेस विग्राहिया । आउठिई थलयराणं, श्रन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १८४ ॥ पलिओ माई तिरिए उ उक्कोसेण वियाहिया । कायटिई थलवराणं श्रन्तोमुहुत्त जहन्निया ।। १८५ ।। A

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