Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 243
________________ [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र १७८ ] गहा एवमायओ । १५१ ॥ ॥ १५३ ॥ इस चउरिन्द्रियाएर, लोगेग रेसे ते सत्रे, न सम्वत्य वियाहिया ।। १५० ।। संत पपलाईया, अपजबरिया विय। ठिइं पडुच साईचा, संपजबसिया विय ॥ छच्चैव मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चरिन्द्रियआउटिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।। १२२ ।। संखिज्जकालमुक्कसं, श्रन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चाउरिन्द्रियकायठिई. तं कार्यं तु अमुं अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाण, अन्तरं च वियाहियं ॥ १५४ ॥ एएसिं वरण चैव, गन्धओ रसफो । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्लसो ।। १५५ || पंचिन्दिया उ जे जीवा, चउत्रिहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य हिया ॥ १५६ ॥ नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्तसु भवे । रयणाभसक्काराभा, वालुयाभा य अहिया ॥ १५७ ॥ पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । ss नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥ १५८ ॥ लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे उ वियाहिया । एतो कालविभागं तु, वोच्छे तेसिं चउविहं ।। १५६ ।। संत पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साइया, सपजयसियावि य ॥ १६० || सायरोवन मेग त उक्कोसेरण दियाहिया | तु पउमाए जहनणं, दसवास सहस्सिया ॥ १६१ ॥ १. जोगर एगा देसम्म ते सव्वें परिकिंत्तिश्रा ।

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