Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]
[१७७
कप्पासटिमिजा य, तिंदुगा तउसमिंजगा । सदावरी य गुम्मी य, वोधव्वा इन्दगाइया ।। १३६ ।। इन्दगोवगमाईया णेगहा एवमायो। लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्बत्थ वियाहिया ॥ १४० ॥ संतई पप्पणाईया, अपजवसियावि य । ठिइं. पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ।। १४१ ॥ एगूणपण्णहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया। तेइन्दियाउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १४२॥ संखिजकालमुक्कोस, अन्योमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकाय ठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥ १४३ ॥ अणन्तकालमुकोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । तेइन्दिरा जीवाण, अंतरं तु वियाहियं ।। १४४ ॥ एएसिं वएणो चेव, गन्धओ रसफासओ। संडाणादेस प्रो वावि, विहाणाइं सहस्ससो ।। १४५ ॥ चारेन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। .. पजतमरज ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१४६ ।। अन्धिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। . भमरे कीड़पयंगे य, ढिकुणे कंकणे तहा ॥ १४७ ।। . कुरकुडे सिंगिरीडी य, नन्दावते य विच्छुए । .: डोले भिगीरीडी य, विरिली अच्छिचेहए ।। १४८ ।। अच्छिले माहए अच्छिरोडए, :
विचित्त - चित्तपत्तर । उहिंजलिया जलकारी य,
नीया तन्तघयाइया ॥१४९ ॥
१. तंववगाइया।

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