Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 238
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१७३ संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥८॥ सत्तव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पाऊण, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ ८६ ।। असंखकाल मुक्कोसं, अन्तोमुहुत जहन्न । काय ठिई आऊण, तं कायं तु अभुचो ॥१०॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्त जहन्नयं । । विजढम्मि सएकाए, पाऊजीवारण अन्तरं ।। ६१ । एएसिं वरणग्रो चेन, गन्धओ रसफासो । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥९२ ।। दुविहा वणस्सईजीवा, सुहमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥ ३२॥ वायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ १४॥ पत्तगसरीराओऽणेगहा, ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा च गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ॥ ६५ ॥ वलया पवगा कुहुणा, जलरुहा ओसही तहा। हरियकाया बोधवा, पत्तगा इह आहिया ॥६६॥ साहारणसरीराओऽणेगहा, ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य ।। ६७ ॥ हिरिली सिरिली सस्सिरिली, जावई केयकन्दली। पलण्डुलसणकन्दे य, कन्दली य कहुचए ॥ ८॥ लोहिणी हूयत्थी हूय,, कुहगाय तहेव य । करदे य वज्जकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ॥ ६ ॥ १. यारसविभेएण पत्त या उ वियाहिया। २. पम्वया ।

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