Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
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१७२]
[श्रीउत्तराध्ययनसूत्र
अब्भपडलब्भवालय,
बायरकाए मणिविहाणे ॥७५ ॥ गोजए य रुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले, भुयमोयग-इन्दनीले य ।। ७६ ॥ चन्दण गेरुय हंस गब्भे, पुलए सोगन्धिए य बोधव्वे । चन्दाहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य ॥ ७७ ॥ एए खरपुढवीए, मेया छत्तीसमाहिया। एगविहमनाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया ॥ ८ ॥ मुहमा य सञ्चलोगमिम, लोगदेसे य बायरा। इत्तो काल विभाग तु, वुन्छ तेसिं च उब्धिहं ॥ ७६ ।। तई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ ८०॥ बावीससहस्साई, वासाणुक्कोलिया भवे । आउठिई पुढवीण, अन्तोमुहुतं जहन्निया ।। ८१ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्त जहन्नयं । काय ठिई पुढवीण. तं काय तु अमुचओ ।। ८२ ।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, पुढदिजीवाण अन्तरं ॥ ३ ॥
पएसिं वरणओ चेव, गन्धओ रसफासो । . संठाणा देसओ वावि, विदाणाई सहस्ससो॥ ८ ॥
दुविहा पाउजीवा उ, सुहमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेव दुहा पुणो ।। ८५॥ वायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से य, हरतरणू महिया हिमे ॥८६॥ एगविहमणाना, सुहमा तत्थ वियाहिया। सुहमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥ ८७ ।।

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