Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

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Page 224
________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १५६. जइ परिणयम्बगरसो, पक्कक विट्ठस्स वावि जारिसओ । पत्तो वि अन्तगुणो, रसो उ तेऊण नायव्वो ।। १३ ।। वरवरुणीए व रसो, विविहाण व आसवारा जारिस | मेहुमेरयस्स वरसो, एतो पहाए परपणं ॥ १४ ॥ खज्जूरमुद्दियरसो, खीररसो खंडलकररसो वा । पत्तो वि अांतगुणो, रसो उ सुक्काए नायव्वो ।। १५ ।। जह गोमडस्स गंधो सुरागमडस्स व जहा हिमडस्स । पत्तो विश्रांतगुणो, लेसागं अप्पसत्थाणं ॥ १६ ॥ जह सुरहिकुसुमगंधा, गंधवासाण पिस्समाणाणं । पत्तो वि अांतगुणो, पत्थलेस तिरहं पि ॥ १७ ॥ जह करगयस्स फासो, गोजिन्भाए य सागपत्ताणं । पत्तो वि अांतगुणो, लेसारां श्रप्पसत्थाणं ॥ १८ ॥ . जह वूरस्स व फासो, नवर्णायस्स व सिरीस कुसुमागं । एतो विश्रांतगुणो, पसत्थलेसाण तिरहं पि ॥ १६ ॥ तिविहो व नवविहो वा, सत्तावीस इविहेक्कसीओ वा । दुसओ तेयालो वा, लेसा होइ परिणामो ॥ २० ॥ पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसु यदिरो य । तिव्वारंभपरिणओ, खुद्दो साहसिओ नरो ।। २१ ।। निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो श्रजिइन्दियो । एयजोगसमा उत्तो, किहलेसं तु परिणामे ॥ २२ ॥ १ इत्तो विश्रांतगुणो रसो उ पम्हाइ मायध्वो । २. गंधाण य

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