Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth
View full book text
________________
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]
[१४६
तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्ख,
निव्वत्तई जस्स करण दुक्ख ॥ ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं,
उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म,
जं से पुणो होह दुहं विवागे ॥७२॥ रसे विरत्तो मणुओ विसोगो,
एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो,
जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥७३। कायस्स फासं गहणं वयन्ति,
ते रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउ अमणुन्नमाहु,
समो य जो तेसु स वीयरागो ॥४॥ फासस्स कायं गहरणं वयन्ति,
कायस्स फासं गहणं वयन्ति । रागरस हेउं समगुन्नमा हु,.
दोसस्स हे अमणुन्नमाहु ।। ७५ ॥ फासेसु जो गिद्धिमुवेद तिव्वं,
अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे सीयजलावसन्ने,
गाहग्गहीए महिसे विवन्ने । ७६॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं,
तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू ,
न किंचि फासं अवरज्झई से ॥७॥

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256