Book Title: Dashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Author(s): Harshchandra Maharaj
Publisher: Atmaram Mohanlal Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ १२८ ] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र खन्तीए गं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? खन्तीए परीस हे जिइ ॥ ४६ ॥ मुत्तीए गं भन्ते ! जीवे किं जणयह? मु० अकिंच जणयइ । श्रचिणे य जीवे श्रत्थलोलागं पुरिसा अपत्थगिज्जो भव ॥ ४७ ॥ अजवाए गं भंते ! जीवे किं जणयइ ? श्र० काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं विसंवायां जणयइ । अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स राहए भवइ ॥ ४८ ॥ मद्दवयाए गं भंते ! जीवे किं जरणयइ ? म० अणुस्सि - यतं जणयइ । अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमद्दवसंपन्ने मदा निट्टावे ॥ ४९ ॥ भावसच्चणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? भा० भावविसोहिं जणयइ । भावविसोहिए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्य आराहण्या ए अब्भुट्टेइ । अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स अ. राहण्यार अब्भुट्टित्त, परलोगधम्मस्से आराहए भवइ || ५०|| करणसच्चंग भन्ते ! जीवे किं जण्यइ । क० करणसत्तिं जगगइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहा वाई तहाकारी यावि भवइ ।। ५१ ।. जोगसच्चणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ । जो० जोगं दिसो - हेइ ॥ ५२ ॥ मणगुत्तयाएं गं भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? म० जीने एगग्गं जणय६ । एयग्गचित्ते से जीने ते संजमाराहुए भवइ ॥ ५३ ॥ १. परलोगे वा ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256