Book Title: Chaitanya Ki Chahal Pahal Author(s): Yugal Jain, Nilima Jain Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal View full book textPage 8
________________ तत्त्वज्ञान : एक अनूठी जीवन कला सर्व विद्याओं में अध्यात्म-विद्या का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि अध्यात्म-विद्या के अतिरिक्त अन्य किसी भी लोक-विद्या के पास आत्मा के स्थायी सुख की गारंटी नहीं है। लोक-विद्या से प्राप्त समस्त सन्निधियां आत्मा की परिधि से बाहर होने से आत्मा को उनका उपभोग होता ही नहीं है। अत: उनके पास आत्म-शान्ति का कोई विधान नहीं है। आत्म-शान्ति अध्यात्म-विद्या का सर्वाधिकार सुरक्षित अधिकार है और उस अध्यात्म-विद्या की साधना का प्रारम्भ तत्त्वज्ञान से होता है। तत्त्वज्ञान सर्व समस्याओं के समाधान की एक अद्भुत जीवन कला है। वही जीवन का सर्वप्रथम कर्म और सर्वप्रथम धर्म है। उसके बिना जीवन असीम वैभव के बीच भी दरिद्री और अशांत है और उसके प्रादुर्भाव में सर्व जागतिक वैभव के बिना भी वह अकेला ही परमेश्वर है। तत्त्वज्ञान वस्तु-दर्शन की एक अलौकिक पद्धति है। वह लोक-कथित वस्तु-विधानों का विश्वासी नहीं है। पदार्थों में पारस्परिक सम्बन्धों की लोक-रूढ़ कहानी तत्त्वज्ञान को सम्मत नहीं है। वह उस लोक-वार्ता को असत्य घोषित करता है जहाँ दो पदार्थों . में किंचित् भी सम्बन्ध घटित किया गया हो। वस्तु के साथ संयुक्त से. दिखाई देने वाले दीर्घकाय संयोगों तक सीमित न रहकर वह वस्तुPage Navigation
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