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ज्ञानस्वभाव
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सम्यग्ज्ञान
( स्व पर प्रकाशक स्वभाव )
ज्ञान आत्मा का सार्वकालिक स्वभाव है, यह आत्मा की एक असाधारण शक्ति तथा लक्षण भी है । अनन्त जड़ चेतन तत्त्वों के समुदाय इस विश्व में ज्ञान से ही चेतन की भिन्न पहिचान होती है । वह आत्मा का एक प्रमुख गुण है जो विश्व का सविशेष सार्वकालिक प्रतिभासन करता है। आत्मा के अनन्त गुण तथा धर्म भी ज्ञान में ही प्रतिबिंबित होते हैं, मानों ज्ञान में ही आत्मा का सर्वस्व समा रहा हो ।
श्री समयसार परमागम में आत्मा को ज्ञानमात्र ही कहा है। लोक मैं भी किसी एक ऐसी विशेषता की अपेक्षा किसी व्यक्ति को सम्बोधित करने की पद्धति है कि जो उसका सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व कर सके। जैसे किसी व्यक्ति को न्यायाधीश के नाम से सम्बोधित करते हैं। न्यायाधीशत्व उसकी एक ऐसी विशेषता है जिससे वह सब मनुष्यों से भिन्न पहिचाना जाता है। यद्यपि उसमें अन्य सामान्य मनुष्यों जैसी तथा व्यक्तिगत अपनी अनेक विशेषताएँ भी हैं। वह केवल न्यायाधीश ही नहीं है किन्तु न्यायाधीश संज्ञा में उसका संपूर्ण सामान्य - विशेष व्यक्तित्व गर्भित हो जाता है। अतः न्यायाधीश शब्दे