Book Title: Chaitanya Ki Chahal Pahal
Author(s): Yugal Jain, Nilima Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 66
________________ बाबू जुगलकिशोर युगल' जन्म: 5 अप्रेल 1924 खुरी, जिला- कोटा (राज.) शिक्षा : एम.ए., साहित्यरत्न पता : 85, चैतन्य विहार, आर्य समाज स्ट्रीट रामपुरा, कोटा (राज.) 324006 ख्यातिप्राप्त दार्शनिक विद्वान बाबू जुगलकिशोर 'युगल' को प्रसिद्ध देवशास्त्र-गुरु पूजा एवं सिद्ध पूजा लिखने के कारण समाज में वही स्थान प्राप्त है, जो हिन्दी साहित्य में 'उसने कहा था' कहानी के लेखक पण्डित चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' को / 'युगलजी' उच्चकोटि के कवि, लेखक एवं ओजस्वी वक्ता हैं। ___ 15 वर्ष की अल्पवय में ही आप में काव्य-प्रसून अंकुरित होने लगे थे। तब राष्ट्रीय चेतना एवं स्वतंत्रता-संग्राम का युग था। युग के प्रवाह में आपकी काव्यधारा राष्ट्रीय रचनाओं से प्रारम्भ हुई। पारम्परिक धार्मिक संस्कार तो आप में बचपन से ही थे, किन्तु उन्हें सम्यक् दिशा मिली इस युग के आध्यात्मिक क्रान्ति स्रष्टा श्री कानजीस्वामी से। स्वयं श्री 'युगलजी' के शब्दों में - 'गुरुदेव से ही मुझे जीवन एवं जीवनपथ मिला है।' युगलजी दर्शन को जीवन का समग्र स्वरूप मानते हैं और दर्शन की सर्वांग क्रियान्विति चैतन्य के साक्षात्कार में स्थापित करते हैं जो चेतन के भीतर झाँका, उसने जीवन देखा बाकी ने तो खींची रे ! परितप्त तटों पर रेखा जनमानस में जैन दर्शन का साधारणीकरण आपके काव्य का मूल लक्ष्य है। आप सफल गद्य एवं नाट्य-लेखक भी हैं। आपके साहित्य कोष से लोकोत्तर रचनाओं में काव्य संग्रह “चैतन्य वाटिका” एवं गद्यविद्या “चैतन्य विहार" में साहित्य व अध्यात्म के समावेशसे जैन जगत को नया आयाम मिला है। युगलजी अखिल भारतीय स्तर के प्रवचनकार हैं और उनकी उपस्थिति धार्मिक आयोजनों का महत्त्वपूर्ण आकर्षण मानी जाती है। "हे विश्व कवि मैं तुमको क्या अर्पण कर दूं मेरी क्या हस्ती है, जो तुमको तर्पण कर दूं तुम हो सूर्य गगन के, मैं कण माटी का तुम ही सागर ज्ञान सिन्धु, मैं एक बिन्दु सा" Printed By : Jain Computers.Mob.: 09414717816

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