Book Title: Chaitanya Ki Chahal Pahal
Author(s): Yugal Jain, Nilima Jain
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 23
________________ चैतन्य की चहल-पहल सम्यग्दर्शन के विषय के संबंध में एक शंका यह की जाती है कि उसका विषय निरपेक्ष, निर्भेद, निर्विशेष, शुद्ध ज्ञायक, पर्यायनिरपेक्ष, अखंड जीवत्व है, किन्तु जीव पदार्थ इतना ही तो नहीं है, वह तो एक ही समय में द्रव्य-गुण-पर्यायात्मक है। तब पदार्थ के केवल द्रव्य पक्ष को स्वीकार करने वाली. दृष्टि एकांतिक हुई, और पर्याय की उपेक्षा कर देने पर जीव पदार्थ अखंड भी कैसे रहा ? .. ... यद्यपि द्रव्य-गुण-पर्यायमयता प्रत्येक पदार्थ की अखंडता है और कोई पदार्थ कभी द्रव्य, गुण अथवा पर्याय से रिक्त उपलब्ध नहीं होता, किन्तु द्रव्य-गुण-पर्यायरूप अखंडता सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है। यह प्रमाण का विषय है। अनन्त गुणात्मक अन्वय स्वरूप द्रव्य की जो शाश्वत एकरूपता है, वही सम्यग्दर्शन विषयक अखंडता है। पर्याय के व्यतिरेकों की अपेक्षा तो द्रव्य में नानात्व का प्रतिभास होता है और वह नानात्व ही खंडभाव है, जो सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है। पर्याय के व्यतिरेकों में द्रव्य वैसा का वैसा भले ही दृष्टिगोचर हो, किन्तु वही का वही कभी उपलब्ध नहीं होता। अत: पर्याय की आश्रयकारिणी पर्याय को कभी विराम नहीं मिलता, क्योंकि वह भी पर्याय के साथ चक्कर खाती रहती है। द्रव्य की आश्रयकारिणी पर्याय का अनन्त विराम है। स्वयं सम्यग्दर्शन को सम्यग्दर्शन का आश्रय नहीं है। - सचाई तो यह है कि पूरे जीव पदार्थ में से सम्यग्दर्शन उतनी ही चीज लेता है, जितनी उसके प्रयोजन की है और वह प्रयोजनभूत चीज अखंड ज्ञायक जीवत्व ही है। जैसे आरोग्य मानवस्वभाव होते हुए भी एक व्यक्ति रुग्ण हो जाता है। यद्यपि आरोग्य और रुग्णत्व दोनों ही एक

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