Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ बजी घंटियां मन-मन्दिर की मेरे प्रिय आत्मन्! हजारों वर्ष पुरानी बात है। कहते हैं, परमात्मा का मन्दिर गहरे समुद्र में डूब गया था और न जाने कितने वर्षों तक वह मन्दिर समुद्र में ही डूबा रहा। मैं आराम से सोया हुआ था, तभी मुझे परमात्मा के मन्दिरों के शिखरों पर लगी हुई घंटियों की आवाज सुनाई दी। मैं चौंका, पता नहीं चल रहा था कि घंटियों की आवाज किस दिशा की ओर से आ रही है। फिर सो गया, लेकिन फिर वही आवाज आने लगी। उस आवाज में एक जादू था, एक मिठास थी, एक आकर्षण था। मैं उस आवाज की ओर चल पड़ा। चलता गया, चलता गया। आवाज इतनी लुभावनी थी कि एक भी कदम रूक न पाया और बढ़ते-बढ़ते देखा - समुन्दर के किनारे पहुंच चुका हूं। आवाज उसी दिशा से आ रही थी। वहां संगीत था। वहां के मन्दिरों पर लगी हुई घंटियों का संगीत था। जब मैं समुद्र के किनारे पहुंचा तो मैंने देखा कि वहां पहले से ही हजारों लोग और भी खड़े हैं। वे भी चाहते हैं कि जिस दिशा की ओर से यह आवाज आ रही है, ये मधुरिम स्वर आ रहे हैं, उसकी ओर हम भी चलें, लेकिन वे लोग डर रहे थे। समुद्र की यात्रा खतरों से भरी है, कहीं डूब गये तो ? ये हजारों लोग, हजारों सालों से वहां खड़े थे, क्यों ? उस आवाज में ऐसा कोई जादू था। ____ मैंने झट से किनारे पर खड़ी नौका का लंगर खोला। उसमें छलांग मारी और नौका हवा और पानी से बातें करने लगी। नौका बढ़ती चली गई। हवा अपने आप उस दिशा की ओर ले जा रही थी। पतवारें निरन्तर चलती चली जा रही थीं। बहुत दूर चला गया। बहुत गहराई तक चला गया। जैसे-जैसे गया, जो आवाज आ रही थी, वह आना बंद हो गयी। मैं घबरा गया, भयभीत हुआ। बजी घंटियां मन-मन्दिर की / १ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 90