Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 15
________________ * पृष्ठभूमि * अमेरिका के विचारक एमर्सन का कथन है - There is Properly no History, only Biography अर्थात इतिहास नाम की कोई वस्तु नहीं है, केवल जीवन-चरित है । वास्तविक इतिहास प्रकृति के क्रोड से प्राप्त किया जा सकता है, जहां चट्टाने इसके पृष्ठ है; और भग्नावशेष उसके शब्द हैं। महापुरुषों का जीवन एवं कर्म स्वयमेव इतिहास है या यूं कहें कि उनके जीवन एवं कार्यों को क्रमबद्ध तरीके से लिपिबद्ध कर लिया जाय तो वह एक इतिहास होगा । यह राष्ट्र स्थापत्यकला एवं शिल्पकला के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण विश्व में सिरमौर रहा है। हमारे जैन तीर्थ स्थल न केवल सौन्दर्य एवं विशिष्ट स्थापत्य कला की दृष्टि से अनुपम एवं अद्वितीय है बल्कि आत्मा की शुद्धि का कारक भी है । जिस प्रकार भोजन हमारे शरीर का पोषण करता है, जिनालय हमारी आत्मा का पोषण करते हैं। भोपावर जैन तीर्थ स्थल अत्यंत प्राचीन एवं वैभवशाली है, जहां भगवान श्री शान्तिनाथजी की काउसठा मुद्रा में 87000 वर्ष प्राचीन अत्यंत मनोहारी एवं अद्वितीय प्रतिमा है । इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से व्यक्ति आल्हादित हो जाता है, उसके अंतर्मन में आलौकिक आनंद की अनुभूति होती है । यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन होने के कारण इसका जीर्णोद्धार भी अत्यंत आवश्यक था । इतिहास रेखा प्रस्तर नहीं है, इसलिए अतीत की मूलभूत अभिधारणाओं को नवीन दृष्टिकोण देना न केवल समाज का दायित्व है बल्कि लेखक का भी । जैसा कि इलियट ने कहा है, "केवल अतीत ही वर्तमान को प्रभावित नहीं करता वर्तमान भी अतीत को प्रभावित करता है ।" इस तर्क से साहित्य एवं इतिहास के नये विकास रूप उसके पूर्व रूपों के मूल्याकंन को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि हम इस तीर्थ के इतिहास का अनुशीलन कर 3

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