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भोपावरतीर्थ कासंक्षिप्त इतिहास
प्रकाशक: श्री शांतिनाथ जैन श्वे. मन्दिर ट्रस्ट
भोपावर, तह. सरदारपुर (धार) म.प्र.454111 फोन : 07296-266830,266861,266897 फेक्स : 07296266863 मो. : 94250-46397
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ऐसी कायोत्सर्ग मुद्रावाली खड़ी श्री शांतिनाथ प्रभु की दुनिया कि एक मात्र प्रतिमा भोपावर मे ही विद्यमान है ।
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- भोपावर तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास
* आशीवदिदाता*
मालव भूषण आचार्यदेव श्री नवरत्नसागर सूरीश्वरजी म.सा.
. * प्रेरणा स्त्रोत * गणिवर्य श्री विश्वरत्न सागरजी म.सा.
* विशेष सहयोगी * श्री रमणभाई जैन “मोन्टेक्स ग्रुप” मुम्बई
* कार्य संचालक * , श्री सुरेन्द्रकुमार राजमलजी जैन , थार
* लेखक * .. । यरावंत चौहान “राष्ट्रीय ओज कवि" बी.एस-सी.-गणित, एम.ए.-हिन्दी साहित्य, अर्थशास्त्र
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भोपावर तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास
भोपावर तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास
नवम् संस्करण : 5,000 प्रतियां लेखक : यशवंत चौहान
प्रकाशक :
श्री शांतिनाथ जैन श्वे. मन्दिर ट्रस्ट भोपावर, तह. सरदारपुर (धार) म.प्र. 454 111 फोन : 07296 266830, 266861,266897 फेक्स : 07296 266863 मो. : 94250 46397
मुद्रक : कंचन व्यॉफिक्स 1, जवाहर मार्ग, राजगढ़
07296 : 235409-10
मूल्य : तीस रुपया मात्र
सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
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* ट्रस्ट मण्डल*
..अध्य क्ष .. पुष्पसेनभाई पी.जवेरी, मुम्बई
मो. 098201 09478
..चेयरमेन .. रमणभाई जैन (मोण्टेक्स पेन), मुम्बई
मो. 098200 35141
.. सचिव .. सुरेन्द्रकुमार राजमलजी जैन, थार
मो. 094250 46397 मो. 07292 358877
.. ट्रस्टी .. डॉ.प्रकाश बांठगानी, इन्दौर डॉ.प्रकाश आर.जैन, इन्दौर
संजय बी.जैन, राजगढ़ अरविन्द एच.जैन, राजगढ़
मनोहर बी.जैन, राजगढ़ शान्तिलाल एस.जैन, राजगढ़ सुमेरमलजी के.सदानी, बेंगलोर ... शान्तिलाल बी.जैन, राजगढ़
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*अनुक्रम*
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3.
निन
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1. नवकार महामंत्र 2. प्रकाशकीय
पृष्ठभूमि 4. आशिर्वचन 5. सोलहवें तीर्थंकर : श्री शान्तिनाथ महाप्रभु
तीर्यत अनेन इति तीर्थ 7. भोपावर का प्रादुर्भाव 8. तीर्थ एवं प्रतिमा की प्राचीनता 9. अतीत में तीर्थ का स्वरूप एवं विकास 10. भोपावर का ऐतिहासिक महत्व
11. तीर्थ का जीर्णोद्धार _12. नवीन जिनालय एक दृष्टी में - 13. भोपावर की भौगोलिक स्थिति 14. तीर्थ पर आयोजित होने वाला उटसव 15. तीर्थ पर उपलब्ध व्यवस्थाएँ 16. समीपस्थ तीर्थ स्थलों का विवरण - 17. तीर्थ के लिए आवागमन के साधन 18. भविष्य की स्वर्णिम योजनाएँ 19. तीर्थ एवं प्रतिमा का प्रभाव 20. एक निवेदन 21. संदर्भ ग्रंथ-सूचि 22. सहयोग राशि हेतु बैंक-सूचि
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...40
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श्री खामणा पारखनाथ भगवान
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লদিয়গ্রাহকষ্ট-ফরহই নারী-গুইট-সুবাতল fীবাত্ব সমস্যা
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नवकार महामंत्र
नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं पढ़मं हवइ मंठालं।
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* प्रकाशकीय *-. ___ धर्म एवं दर्शन की दृष्टि से भारत का इतिहास अत्यन्त गौरवशाली रहा है। धार जिला भी अपनी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों के कारण न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है। देश के हृदय स्थल मध्यप्रदेश के धार जिला मुख्यालय से 46 किलोमीटर एवं सरदारपुर तहसील से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित भोपावर तीर्थ भी हमारे गौरवशाली अतीत का एक स्वर्णिम अध्याय है। भोपावर तीर्थ स्थल पर शान्तिनाथ प्रभु की काउसठा मुद्रा मे 12 फीट उँची श्यामवर्णी, लगभग 87 हजार वर्ष प्राचीन, कांतियुक्त एवं भव्य प्रतिमा स्थित है। यह प्रतिमा भगवान नेमिनाथजी के समय की है, यही कारण है कि भोपावर तीर्थ इस भारतवर्ष का एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है।
विगत काल में यह तीर्थ राजगढ़ निवासी श्री प्रेमचन्दजी की व्यवस्था में रहा तत्पश्चात उनके पुत्र श्रीमान बागमलजी तथा उनके पुत्र मगनलालजी की व्यवस्था में रहा । इनके स्वर्गवास के पश्चात इनके अनुज श्री रतनलालजी ने यहाँकी व्यवस्थाका कार्यभार संभाला तथा इसतीर्थकीसेवा करतेहुएउनका स्वर्गवासहुआ | उनकेस्वर्गवास के 30 वर्ष पश्चात शान्तिनाथ प्रभु की दिव्य प्रेरणा एवं महान तपस्वी पू.आ.श्री नवरत्नसागर सूरीश्वरजी म.सा. के आशीर्वाद से उनके ही परिवार के श्री सुरेन्द्रकुमार राजमलजी जैन ने इस तीर्थ की व्यवस्था का उचरखायित्व अत्यंत सुन्दर तरीके से संभाला।
राजगढ़ नगर के ओजस्वी कवि, गीतकारएवं लेखक यशवंत चौहान ने इस पावन तीर्थ के इतिहास को नये संदर्भो में लिखा है। इस इतिहास में न केवल तीर्थ का गौरवशाली अतीत है वरन तीर्थ के जीर्णोद्धार के संदर्भ में नवीन जानकारी, भगवान श्री शान्तिनाथजी का संक्षिप्त जीवन वृत, तीर्थ की सचित्र जानकारी तथा भविष्य के लिए स्वर्णिम योजनाओं का भी दिग्दर्शन है। श्री यशवंत चौहान ने अथक परिश्रम से तथा नवीन अन्वेषण कर यह कृति तैयार की है हम उनके हृदय से आभारी हैं। .
- - प्रकाशक मण्डल
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* पृष्ठभूमि *
अमेरिका के विचारक एमर्सन का कथन है - There is Properly no History, only Biography
अर्थात इतिहास नाम की कोई वस्तु नहीं है, केवल जीवन-चरित है । वास्तविक इतिहास प्रकृति के क्रोड से प्राप्त किया जा सकता है, जहां चट्टाने इसके पृष्ठ है; और भग्नावशेष उसके शब्द हैं। महापुरुषों का जीवन एवं कर्म स्वयमेव इतिहास है या यूं कहें कि उनके जीवन एवं कार्यों को क्रमबद्ध तरीके से लिपिबद्ध कर लिया जाय तो वह एक इतिहास होगा ।
यह राष्ट्र स्थापत्यकला एवं शिल्पकला के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण विश्व में सिरमौर रहा है। हमारे जैन तीर्थ स्थल न केवल सौन्दर्य एवं विशिष्ट स्थापत्य कला की दृष्टि से अनुपम एवं अद्वितीय है बल्कि आत्मा की शुद्धि का कारक भी है ।
जिस प्रकार भोजन हमारे शरीर का पोषण करता है, जिनालय हमारी आत्मा का पोषण करते हैं। भोपावर जैन तीर्थ स्थल अत्यंत प्राचीन एवं वैभवशाली है, जहां भगवान श्री शान्तिनाथजी की काउसठा मुद्रा में 87000 वर्ष प्राचीन अत्यंत मनोहारी एवं अद्वितीय प्रतिमा है । इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से व्यक्ति आल्हादित हो जाता है, उसके अंतर्मन में आलौकिक आनंद की अनुभूति होती है । यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन होने के कारण इसका जीर्णोद्धार भी अत्यंत आवश्यक था ।
इतिहास रेखा प्रस्तर नहीं है, इसलिए अतीत की मूलभूत अभिधारणाओं को नवीन दृष्टिकोण देना न केवल समाज का दायित्व है बल्कि लेखक का भी । जैसा कि इलियट ने कहा है, "केवल अतीत ही वर्तमान को प्रभावित नहीं करता वर्तमान भी अतीत को प्रभावित करता है ।" इस तर्क से साहित्य एवं इतिहास के नये विकास रूप उसके पूर्व रूपों के मूल्याकंन को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि हम इस तीर्थ के इतिहास का अनुशीलन कर
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रहे हैं। चूंकि यह मन्दिर अपने गौरवशाली अतीत से वर्तमान स्वरुप तक पहुँच रहा है एवं तीर्थ के लिए स्वर्णिम भविष्य की महती योजनाएँ भी है , अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि इन समस्त मान बिंदुओं को इंगित करने वाला कोई दस्तावेज हमारे पास हो। मेरा प्रयास इसी दिशा में है।
इस पुस्तक के नौवें संस्करण के लेखन एवं प्रकाशन में मुझे श्री सुरेन्द्रकुमार राजमलजी जैन (धार), श्री मनोहरलालजी पुराणिक (कुक्षी), श्री शान्तिलालजी सुराणा (इन्दौर), श्री कांतिलाल भंडारी (राजगढ़), हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ शिक्षक श्री टी.एस. चौहान, श्री सुनिल गर्ग (सरदारपुर) आदि विद्वज्जनों का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ । पुस्तक की पांडुलिपि तैयार करने में मुझे श्री अमित जैन (कंचन वाफिक्स) का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ।
इस कृति के प्रकाशन में मुझे जिन महानुभवों का प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग मिला मैं उनका अन्तःकरण से आभारी हूँ। में श्री शान्तिनाथजी जैन मन्दिर ट्रस्ट मण्डल भोपावर का विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होने मुझे इस पावन तीर्थ के इतिहास के अनुशोधन का कार्य सौंपा।
इस पुस्तक के बारे में आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ताकि हम अगले संस्करण को और बेहतर बना सके।
यशवन्त चौहान "राष्ट्रीय ओज कवि"
सम्पर्क : “सृजन" 144, गांधी मार्ग राजगढ़ (धार) म.प्र. 454 116 207296-235309
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* आशीर्वचन *
प. पू. आचार्य श्री नवरत्नसागरजी म.सा.
श्री शंखेश्वर महातीर्थ जैन आगम मन्दिर संस्था जेठ सुवि 1 गुरुवार
भारत भर के भाविक श्रद्धालु धर्मप्रेमी श्री संघ एवं श्रावक जन धर्मलाभ देवगुरु की कृपा से आनंद मंगल
भोपावर महातीर्थ में 87 हजार साल प्राचीन विश्वभर में एक मात्र अद्भुत अलौकिक परम प्रभावशाली अति आल्हादक परम शान्तिदायक काउस्सठा मुद्रावाली श्यामवर्णकी 12 फीट की, खड़ी श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा भाविक भक्तजनों को भावविभोर बनाती विराजमान है ।
प्राचीन एवं ऐतिहासिक इस तीर्थ का आमूल-चूल जिर्णोद्धार जिन शासन के प्रभावशाली जीतार्थ आचार्य भगवंतो के आशीर्वाद के साथ द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है, भागयशाली लक्ष्मीपतिओं ऐसे परम पुण्य के पाथेय स्वरूप आत्म शुद्धिकारक तीर्थोद्धार के कार्य में आप अपनी संपत्ति का उदारता के साथ हृदय की अनुमोदना के साथ लाभ लेकर कृतार्थ बन कर आत्म श्रेय साधें यही आंतरिक शुभ प्रेरणा
सभी को धर्मलाभ धर्माराधना में प्रगतिमान बनें, मानव जीवन को सफल करें।
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सागर
दि. २०/५/२००४
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धधर्मलाभ
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* सोलहवें तीर्थंकर * श्री शान्तिनाथजी महाप्रभु
इस जम्बुद्वीप के भरत क्षेत्र में कुरूदेश में हस्तिनापुर नाम का एक नगर था। यह नगर प्राकृतिक सम्पदाओं से परिपूर्ण तथा समृद्ध था। इस नगर में महाप्रतापी, शूरवीर, न्यायप्रिय इक्ष्वाकु वंश के महाराजा विश्वसेनजी का राज था । अचिरादेवी महाराज विश्वसेनजी की रानी थी, जो रूप लावण्य एवं सुलक्षणों से युक्त थी। वह सदगुणों से परिपूर्ण एवं शीलवती होने के कारण अपने राजवंश को सुशोभित करती थी । महाराजा एवं महारानी में प्रगाढ़ प्रीति थी । उन दोनो का जीवन अत्यंत सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था ।
उस समय अनुत्तर विमानों में मुख्य ऐसे सर्वार्थसिद्ध महाविमान में मेघरथजी का जीव अपनी तैंतीस सागरोपम की सुखमय आयु पूर्ण कर चुका था। वह वहां से भाद्रपक्ष कृष्णा सप्तमी को भरणी नक्षत्र में च्यव कर माहारानी अचिरादेवी की कुक्षि (कोंख) में उत्पन्न
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हुआ । महारानी ने चौदह स्वप्न देखे । महारानी ने स्वपनों की बात है महाराजा से कही। स्वप्न सुनकर महाराज बहुत प्रसन्न हुए उन्होने कहा, महादेवी आपकी कुक्षि (कोख) में कोई लोकोत्तम महापुरुष आया है।
महारानी अचिरादेवी की कुक्षि (कोख) से उत्पन्न बालक कोई सामान्य बालक नहीं था, उसकी नियति तो चक्रवर्ती सम्राट एवं तीर्थकर पद को सुशोभित करने वाली थी।
कहा जाता है कि - होनहार बिरवान के, होत है चिकने पात । महारानी अचिरादेवी की कुक्षि में आए गर्भस्थ उत्तम जीव के प्रभाव से उस समय कुरुक्षेत्र में फैल रही महामारी शांत हो गयी तथा सर्वत्र शांति व्याप्त होने लगी । यही कारण था कि ज्येष्ठ मास के क्रष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भरणी नक्षत्र में जब सभी ग्रह उच्च स्थान पर थे महारानी अचिरादेवी ने जिस पुत्र रटन को जन्म दिया उसका नाम शान्तिनाथ रखा गया। __इस अद्भुत बालक के जन्मोत्सव मनाने 56 विककुमारी एवं 64 इन्द्र आये एवं मेरूगीरी पर्वत पर परमाटमा का अभीषेक द्वारा जन्म कल्याणक महोटसव मनाया तथा महाराजा विश्वसेनजी द्वारा अपने नठार में जन्मोटसव मनाया गया।
. यौवनवय प्राप्त होने पर राजकुमार शान्तिनाथ का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया, महाराजा विश्वसेनजी ने राज्य का भार पुत्र को दे दिया और अपना आत्महित साधने लगे। श्री शान्तिनाथजी यथाविधि राज्य का संचालन करने लठो और निकाचित् कर्मो के उदय से रानियों के साथ भोठा भोगने लगे । सभी रानियों में अग्र स्थान पर महारानी यशोमती थी । महारानी यशोमती ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया जिसका नाम चक्रायुध रखा गया।
न्याय एवं नीतिपूर्वक राज्य का संचालन करते हुए महाराजा । शान्तिनाथजी को 25 हजार वर्ष व्यटीत होने पर अस्त्र शाला में चक्ररटन का प्रादुर्भाव हुआ | महाराजा ने चक्ररत्न का अलाई।
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महोटसव किया इसके बाद एक हजार देवों से अधिष्ठित चक्र रत्न से अस्त्रशाला से निकल कर पूर्व दिशा की ओर चला। उसके पीछे महाराजा शान्तिनाथजी सेना सहित दिग्विजय करने के लिए रवाना हुए। दिग्विजय का कार्य 800 वर्षों में पूर्ण करके महाराजा हस्तिनापुर पधारें। आपको चौदह रत्न और नवनिधियों की प्राप्ति हई। देवों और राजाओं ने महाराजा के चक्रवर्ती होने पर उटसव किया और महाराजा शान्तिनाथजी को इस अवसर्पिणी काल का पाँचवा चक्रवर्ती घोषित किया। इसके पूर्व चार चक्रवर्ती सम्राट क्रमशः भरत, सगर, मधवा एवं सनत्कुमार थे।
लोकान्तिक देव चक्रवर्ती सम्राट श्री शान्तिनाथजी से निवेदन करने लगे - हे भगवन ! अब धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किंजिए। इसके बाद प्रभु ने वर्षीदान देना प्रारंभ कर राजकुमार चक्रायुध को राज्य का भार सौंप दिया। भगवान ने जयेष्ट विदी 14 , भरणी नक्षत्र के दिन दीक्षा ग्रहण की।
चक्रायुध आदि राज्यजनों ने दीक्षा महोटसव किया । भगवान को मनः पर्यवज्ञान उत्पन्न हुआ | पौष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन था, चन्द्र, भरणी नक्षत्र में आया था कि भगवान को अनादिकाल से लगे घाती-कर्म नष्ट हो गए और प्रभु को केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त हो गया। प्रभु सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी हो ठगए। इन्द्र आदि ने प्रभु का केवलज्ञान महोत्सव किया समवसरण (तीर्थकरको केवल ज्ञान उत्पन्न होने पर इन्द्र आज्ञा से कुबेर उनके समवसरण अर्थात सभाभवन की रचना करते हैं, जहां तीर्थंकर का धर्मोपदेश होता है )कीरचना हुई। भगवान ने धर्मदेशना दी जिसका संक्षिप्त सार निम्न है -
- जीवों के लिए अनेक प्रकार के दुःखों का मूल कारण यह चतुर्गति रूप संसार है। जिस प्रकार मूल सूख जाने पर वृक्ष अपने आप सूख जाता है। उसी प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों के क्षीण होते ही संसार अपने आप क्षीण हो जाता है। इन्द्रियों पर अधिकारकिए बिना कषायों का क्षय असंभव है। इन्द्रिय
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रूपी चपल एवं दुर्दान्त अश्व, प्राणी को बल पूर्वक खींचकर नरक की ओर ले जाता है । इन्द्रियों के वशीभूत होकर ही मनुष्य अभक्ष्य भक्षण, अपेय पान और अगम्य के साथ गमन करता है । इन्द्रियों के वशीभूत हुए जीव अपने उत्तम कुल और सदाचार से भ्रष्ट होकर राग एवं मोह का दासत्व करते हैं। समझदार लोग उन्हें देखकर हँसते है जो दूसरों को विनय, सदाचार, धर्म और संयम का उपदेश देते हैं किन्तु स्वयं इन्द्रियों से पराजित हो चुके हैं। एक वीतराग भगवंत के बिना इन्द्र से लेकर एक कीड़े तक सभी प्राणी इन्द्रियों से हारे हुए हैं। स्वर्ण-शिखा जैसी दीप ज्वाला के दर्शन से मोहित होकर पतंगा दीपक पर झपटकर मरता है, मनोहर गायन सुनने में लुब्ध हुआ हिरण शिकारी के बाण से घायल होकर जीवन से हाथ धो बैठता है, इसलिए समस्त दुःखों से मुक्त होने के लिए इन्द्रियों का दमन करना चाहिए। बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि इन्द्रियों के विषय में राग- -द्वेष का त्याग करे ।
केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान 24999 वर्षों तक विचरते रहे । निर्वाण का समय निकट आने पर प्रभु सम्मेतशिखर पर्वत पर पधारे और 900 मुनियों के साथ अनशन किया एक मास के अंत में ज्येष्ठ - कृष्णा 13 (तेरस) को भरणी नक्षत्र में उन मुनियों के साथ भगवान मोक्ष पधारे। भगवान का कुल आयुष्य एक लाख वर्ष का था । समवायांग सूत्र के अनुसार भगवान शान्तिनाथजी के चक्रायुध आदि 90 गणधर हुए ।
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* तीर्यते अनेन इति तीर्थ *
पुण्य क्षेत्रे कृतं पुण्यं बहुथा ऋद्धिमृच्छति । पुण्य क्षेत्रे कृतं पापं महदण्वपि जायते॥
- शिवपुराण, विद्येश्वर 13/36-38 तीर्थ वास जनित पुण्य कायिक, वाचिक और मानसिक सारे पापों का नाश कर देता है। तीर्थ में किया हुआ मानसिक पाप वजलेप हो जाता है। वह कल्पों तक पीछा नहीं छोड़ता है।
भारतीय संस्कृति में तीर्थ स्थल का अट्यधिक महत्व है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हे देवताओं तथा ऋषियों ने अपना वास स्थान बनाकर अनुगृहीत किया है। इसीलिए उनमें टीर्थत्व प्रकट हो गया है। तथा अन्य बहुत से तीर्थ क्षेत्र ऐसे हैं जो लोगों की रक्षा के लिए स्वयं प्रादुर्भूत हुए हैं। - श्री सोमप्रभाचार्यजी ने टीर्थकी महिमा पुनीत तीर्थयात्रा करने वाले संघ का वर्णन करते हुए कहा है कि -
यः संसार निरास लालस मतिर्मुक्यर्थमुतिष्ठटो, यं तीर्थ कथंयति पावन तया येनास्ति नान्यः समः । यस्मै तीर्थपतिनमस्याति सतां यस्यमाच्छु भं जायते, स्फुर्टियस्य परावसति च गुणा यस्मिनस्य संघोऽय॑तान् ।।
अर्थात जो संसार से उद्विग्न होकर उसे छोड़ने की इच्छा से मोक्ष में जाने के लिए तत्पर बनता है, पवित्र होने के कारण ज्ञानी पुरुष जिसे तीर्थ कहते हैं, जिसके समान जगत में अन्य कोई नहीं जिसे तीर्थंकर भी नमस्कार करते हैं, जिसके द्वारा सतपुरुषों का कल्याण होता है, जिसकी अत्युत्तम महिमा है, जिस श्री संघ में अनेक गुणों का वास है, उस संघ की तुम पूजा करो।
भारत की तपोभूमि पर अनेक पुण्यात्माओं ने परम उपकारी जगत वल्लभ तीर्थकर भगवंतो के साकार स्वरुप की स्थापना, न केवल स्वकल्याण अपितु जनकल्याण के लिए भी की है। उनक
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महापुरुषों ने प्रभु-प्रतिमाओं को स्थापित कर वेवविमान सदृश्य जिनालयों को बनाकर तीर्थ भूमि को जन्म दिया, जिसके दर्शन मात्र से समस्त जीवों की आत्माएं पवित्र हो जाती हैं। यही कारण है कि शास्त्रकारों ने कहा है
___“तीर्यते अनेन इति तीर्थ" अर्थात जो आत्मा को तार दे उसी का नाम तीर्थ है।
यह भारत भूमि ऋषियों, मुनियों एवं तपस्वियों की तपोभूमि रही है। हमारे तीर्थ स्थल न केवल हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक है, बल्कि आत्मा की शुद्धि के केन्द्र भी है। चेतना के एकीकृत विकास के पूर्व से ही यहां तीर्थ स्थलों का अस्तित्व था। - दीर्थों का भाव एवं महत्व अति विशिष्ट है। प्रभु की प्रतिमा के स्पर्श मात्र से अन्तर्मन के महासागर की लहरें नृत्य करने लगती है, इस पावन भारतभूमिपरऐसे अनेकटीर्थस्थल हैं। इन तीर्थस्थलोंमें भोपावर जैन तीर्थ स्थल अत्यन्त प्राचीन, कलात्मक एवं वैभवशाली है । जहां तीर्थ के मूलनायक भगवान शान्तिनाथजी की अनुपम एवं अद्वितीय प्रतिमाहै।इसऐतिहासिकजैन तीर्थपर श्रीकृष्ण, बलरामजीतथा अनेक साधु-संतो की चरणरज विद्यमान है। निःसंदेह तीर्थोद्धार के बाद यह तीर्थ सम्पूर्ण भारत वर्ष में जिन शासन के गौरख में अभिवृद्धि करेगा।
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* भोपावर का प्रदुर्भाव
महाराजा भीष्मक विदर्भदेश के अधिपति थे । उनके पांच पुत्र व एक सुन्दर पुत्री थी । सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी (रुक्मणकुमार) था, चार छोटे भाईयों के नाम क्रमशः रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मेश और रुक्ममाली थे। उनकी बहिन थी सती रुक्मिणी जो भगवती लक्ष्मीजी का अवतार थी। जब रूक्मिणी ने श्री कृष्ण के सौन्दर्य, पराक्रम, गुण और वैभव की प्रशंसा सुनी तो उसने श्रीकृष्ण को मन ही मन में अपना पति मान लिया था । श्रीकृष्ण भी यह जानते थे कि रुक्मिणी सौन्दर्य, शील, स्वभाव और गुणों में अद्वितीय है अतः वही उनके अनुरूप पटनी है ।
रुक्मिणी के भाई बन्धु भी चाहते थे कि हमारी बहिन का विवाह श्रीकृष्ण से हो, किन्तु रुक्मी यह नहीं चाहते थे और उन्होने उसका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया । वे शिशुपाल को ही अपनी बहिन के योग्य वर समझते थे । परमसुंदरी रुक्मिणी को यह बात पता चलने पर, एक विश्वास पात्र ब्राह्मण को तुरंत संदेश देकर श्रीकृष्ण के पास भेजा एवं अपनी आंतरिक इच्छा से उन्हे अवगत
करवाया ।
इधर कुड्डिलपुर (कुन्दनपुर) महाराजा भीष्मक अपने बड़े पुत्र रुक्मी के स्नेहवश अपनी कन्या शिशुपाल को देने के लिए विवाहोत्सव की तैयारी करा रहे थे ।
रुक्मिणीजी अन्तःपुर से निकलकर देवीजी के मन्दिर के लिए चली। बहुत से सैनिक उनकी रक्षा में नियुक्त थे । वे स्वयं मौन थीं और माताएं तथा सखी सहेलियां सब ओर से उन्हे घेरे हुए थी। शूर-वीर राजसैनिक हाथों में अस्त्र-शस्त्र उठाए कवच पहने उनकी रक्षा कर रहे थे । उन्होने माँ अम्बिका का पूजन-अर्चन किया और अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए आशीर्वाद मांगा। रुक्मिणी जिस प्रकार उत्सव यात्रा के बहाने मंद-मंद गति से चलकर भगवान श्रीकृष्ण पर अपना सौन्दर्य न्योछावर कर रही थी। उनके सौन्दर्य
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को देखकर बड़े-बड़े नरपति एवं वीर इतने मोहित और बेहोंश हो गए कि उनके हाथों से अस्त्र-शस्त्र छूटकर गिर पड़े और वे स्वयं भीं रथ, हाथी व घोड़े से धरती पर आ गए। उसी समय उन्हे श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण के दर्शन हुए राजकुमारी रुक्मिणीजी रथ पर चढ़ना ही चाहती थी कि श्रीकृष्ण ने समस्त शत्रुओं के देखते-देखते उनकी भीड़ में से रूक्मिणीजी को उठा लिया और उन सैकड़ों राजाओं के सिर पर पांव रखकर उन्हे अपने रथ पर बैठा लिया जिसकी ध्वजा पर गरूड़ का चिन्ह था, और वे बलरामजी आदि यदुवंशियों के साथ वहां से चल पड़े।
रुक्मिणीजी के बड़े भाई रुक्मी को यह बात बिल्कुल सहन नहीं हुई कि मेरी बहिन को श्रीकृष्ण हर ले जाए और राक्षस रीति से बलपूर्वक उनके साथ विवाह करें। रुक्मी बली तो था ही, उसने एक अक्षौहिणी सेना साथ ली और श्रीकृष्ण का पीछा किया। महाबाहु रुक्मी ने कवच पहनकर और धनुष धारण करके समस्त नरपतियों के सामने यह प्रतिज्ञा की कि, मैं आप लोगों के सामने यह शपथ ग्रहण करता हूँ कि यदि मैं युद्ध में श्रीकृष्ण को न मार सका और अपनी बहिन रूक्मिणी को न लौटा सका तो अपनी राजधानी कुन्दनपुर में प्रवेश नही करूंगा, और सारथी से कहा जहाँ कृष्ण हो वहाँ मेरा रथ शीघ्रता से ले चलो ।
रुक्मी और श्रीकृष्ण के बीच घमासान युद्ध हुआ जिसमें रुक्मी को पराजय प्राप्त हुई, श्रीकृष्ण ने रुक्मी को जिवित पकड़ लिया किन्तु बहन रुक्मणी ने भाई रुक्मी की जीवन भीक्षा मांगकर उसे बचाया | रुक्मी ने यह प्रतिज्ञा कर ली थी की श्रीकृष्ण को मारे बिना व छोटी बहिन को लौटाए बिना वापस कुन्दनपुर नहीं जायेगा । अतः रुक्मी अपनी प्रतिज्ञा अनुसार वापस कुन्दनपुर नहीं गए तथा अपने रहने के लिए भोजकुट नाम की एक बहुत बड़ी नगरी बसाई जो वर्तमान में भोपावर के नाम से जानी जाती हैं ।
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* तीर्थ एवं प्रतिमा की प्राचीनता * वर्तमान समय का भोपावर ग्राम अतीत का अट्यन्त सुंदर एवं वैभवशाली नगर था । इसका नाम भोजकट (भोजकुट) था। इस नगर की स्थापना श्री कृष्ण वासुदेव की पत्नी रुक्मिणी के भाईरुक्मी (रुक्मणकुमार) के द्वारा की गई। जिसका प्रमाण यह है कि यहाँ से 17 कि.मी. की दूरी पर कुण्डिनपुर (कुंदनपुर) जिसका वर्तमान नाम अमझेरा है, स्थित है।रुक्मी के पिता भीष्मक यहाँ के अधिपति थे । प्रमाण स्वरुप अमकाझी-झमकाजी में रथ के निशान आज भी मौजूद है। यहाँ एक कुण्ड व देवी का मन्दिर है।
रुक्मणकुमार ने मन्दिर का निर्माण कर श्री शान्टिानाथ प्रभु की विशाल 12 फूट उँची काउस्सगधारी श्यामवर्णीय प्रतिमा जैन शास्त्रानुसार प्रतिष्ठित करवाई थी। सत्य-अहिंसा से प्रेरित होकर तथा श्री नेमिनाथजी जो यदुवंशी थे एवं जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे उनकी परंपरा का अनुसरण करते हुए रुक्मी ने श्री शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा की स्थापना की। यह प्रतिमा भगवान श्री नेमिनाथ के जमाने की हैं।
कल्पसूत्र के अनुसार भगवान श्री पार्श्वनाथ और श्री नेमिनाथजी के समय का अंतर लगभग 84 हजार वर्ष बताया है एवं भगवान श्री पार्श्वनाथ एवं श्री महावीर स्वामी के समय का अंतर 250 वर्ष है। भगवान श्री महावीर का काल भी वर्तमान से 2600 वर्ष पूर्व का है। इस प्रकार यह तीर्थ लगभग 87000 वर्ष प्राचीन है। मूल गार्भ-गृह आज भी यथावत उसी युठा का है।
पूज्य न्यायविजयजी द्वारा रचित जैन तीर्थों का इतिहास, प्राचीन ग्रंथों, टीर्थ माला स्त्रोत, प्राचीन टीर्थमाला संठाह तथा पूज्य श्री कनकविजयजी महाराज द्वारा रचित श्री जैन तीर्थ का इतिहास में भी इस बात की पुष्टि की है कि यह प्रतिमा भगवान नेमिनाथजी के समय की ही है। इससे यह स्पष्ट है कि यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन्
है।
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इस तीर्थ की विशाल 12 फुट की काउस्सगधारी प्रतिमा स्वयं इस बात की प्रतीक है कि यह तीर्थ अति प्राचीन है । क्योंकि ऐसी दिव्य एवं विशाल प्रतिमा जो दो पाँव पर आधारित है, उसका निर्माण होना संभव नहीं है; ऐसा शिल्पशास्त्रियों का ही कथन है । मूल गर्भ गृह का अष्ट पहलू गुम्बज भी प्राचीनता का द्योतक है, जो आज भी यथावत विद्यमान है ।
मथुरा की कंकालीटीका के पास दूसरी शताब्दी में बने जैन स्तूप जिसे देव निर्मित स्तूप भी कहा जाता है, उसमें प्राप्त एक शिलालेख में उस समय देव स्थापित मूर्तियों के उल्लेख में कृष्णकाल के जमाने की मूर्तियों का जिक्र है । जिसमें इस विशाल मूर्ति का भी वर्णन है; क्योंकि मथुरा कृष्ण वासुदेव की लीला भूमि रही है। मथुरा से प्राप्त आयोग पट्टों में भी इस प्रकार की मूर्ति का दृश्य अकिंत है तथा वर्णन भी है ।
मूर्ति पर शिलालेख नहीं होना, मूर्ति के नीचे हिरण का चिन्ह होना, मस्तक पर घुघराले बाल जैसा शिल्प होना तथा मूर्ति काले प्राचीन पाषाण की कलात्मक होना, ये सभी इसके पाषाण युग के होने की कहानी कहते हैं। साथ ही प्राचीन जैन तीर्थों के सभी लक्षण जैसे शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि तीर्थों के है, वे सभी यहां पाए जाते हैं ; यथा - जैन भाइयों की बस्ती का अभाव, जंगली क्षेत्र आदिवासीबस्ती, आसपास जलाशय, चारों ओर प्राकृतिक एवं मनोहारी दृश्य विशिष्ट चमत्कार इत्यादि ।
पूर्व व्यवस्थापक स्व. सेठ बागमलजी के जमाने में एक व्यक्ति के शरीर में व्यंतर वेदना थी । वह भी यह बतलाया करता था कि यहाँ पर 40 मन्दिर थे तथा 200 वर्ष पूर्व यहाँ जैनियों की अच्छी बस्ती थी । ऐसी ही किंवदंतियाँ यहां के वृद्ध लोग भी बताते है । आज भी पुराने मकान, कई टूटी-फूटी मूर्तियों के अवशेष खुदाई करने पर खेतों से मिलते है । अमझेरा और भोपावर के बीच डाठोल गाँव में भी कई जैन मन्दिर भन स्थिति में पड़े है । अगर इनकी खुदाई की जाए तो कई मूर्तियाँ निकल सकती है। भोपावर के मन्दिर के जिर्णोद्धार के समय जब खुदाई की गई थी, तो कितनी
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ही मूर्ति के अंगोपांठा, खंडित मूर्तियाँ, परिकर देव-देवियों की मूर्तियाँ से जो की अत्यंत विशिष्ट है, निकली । जिनमें से कई मूर्तियाँ जो साबूत थी, अन्य गाँवों में जहां मन्दिर नहीं थे वहां दर्शन-पूजन हेतु दे दी गई। जीर्णोद्धार के समय नया रंगा मंडप आदि बनाने हेतु जब नींव खोदी गई तो खोदने पर विशाल पुराने शिखर का अंश (जो लाल पत्थर से बना हुआ है ) निकला, उसका अंत लेने के लिए उसकी और खुदाई की गई तो वह बहुत विशाल होने से तथा उसके ऊपर सरकारी किले की दीवार होने से आगे खोद नहीं पाए । उसको वापस भर दिया तथा उसी शिखर पर नया शिखर बनवाया । मन्दिर के पुराने शिखर का कुछ हिस्सा जानकारी हेतु मन्दिर की परिक्रमा में तीर्थ यात्रियों के दर्शनार्थ खुला रखा है। जिस पर पत्थर का एक टुकड़ा रखा है, इसे उठाकर पूराने शिखर का अंश श्रद्धालु देख सकते है। इससे स्पष्ट है कि मन्दिर अत्यंत प्राचीन है।
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श्री अंबिका माता (16)
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* अतीत में तीर्थ का स्वरूप एवं विकास
इस तीर्थ के वहीवटकर्ता श्री बागमलजी जैन, निवासी राजगढ़ विक्रम संवत : 1975
(भोपावर तीर्थ के आद्य व्यवस्थापक जिनके प्रयास एवं कड़ी मेहनत ने इस तीर्थ को विकास के मार्ग पर अग्रसर किया । इनके पश्चात् इनके सुपुत्र श्री मगनलालजी तथा रतनलालजी ने भी अपना सम्पूर्ण जीवन तीर्थ विकास में समर्पित किया इनके बाद सुपौत्र डॉ. प्रकाश जैन, इन्दौर ने सम्पूर्ण सम्पत्ति तीर्थ को दान देकर अपने पूर्वजों का नाम रोशन किया । वर्तमान में इस परिवार के श्री सुरेन्द्र जैन इस तीर्थ का सम्पूर्ण कार्यभार संभाल रहे है ।)
हमारा भारत वर्ष धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से विश्व गुरु रहा है । इस देश का अतीत अत्यंत वैभवशाली था । आर्थिक रूप से सम्पन्न इस देश पर अनेक विदेशी आक्रमण हुए तथा उन्होने न केवल इस देश की आर्थिक सम्पन्नता को बल्कि इस देश की सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत को भी क्षतिग्रस्त किया। कालांतर में हमारा मालवांचल एवं भोपावर तीर्थ भी इससे अछूता नहीं रहा ।
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इस समय श्रावक सेठ गट्टुलाल पूनमचन्दजी को छोड़कर सभी व्यवसायी आजीविका हेतु बाहर चले गए थे । वे इस तीर्थ की व्यवस्था देखते थे । आँख की बिमारी के पश्चात् सेठ गट्टू लालजी एवं डुंगाजी हुक्मीचन्दजी के हरकचन्द सेठ ने बागमलजी को इस तीर्थ की व्यवस्था संवत् 1970 आसोज विदि 9 को सौंपी। सेठ बागमलजी ने मन्दिर की व्यवस्था 1 रूपये 7 पैसे की सिल्लक लेकर संभाली। जिस समय उन्होनें मन्दिर की व्यवस्था संभाली, उस समय मूलनायक के भोयरे के अतिरिक्त बाहर का हिस्सा वीरान था । बागमलजी ने 82 वर्ष की उम्र में बिमारी के कारण तीर्थ की व्यवस्था अपने पुत्र 'मगनलालजी व रतनलालजी को सौंप दी ।
संवत 1978 शुभमिति फाल्गुन वदी 5 को प्रातः स्मरणीय गणधर भगवन्त श्री सुधर्मा स्वामीजी की पुण्यवंती पाठ परंपरा में आए हुए 1008 श्री जैन आचार्य श्रीमद् सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज परमपूज्य पन्यास मोतीविजयजी महाराज तथा आदि ठाणा 26 सहित भोपावर पधारे और श्री शान्तिनाथ भगवान के दर्शन कर अपूर्व आनंदित हुए। अधिष्ठायक देव का स्वप्न भी महाराज साहेब को प्राप्त हुआ, जिसमें तीर्थ की प्राचीनता बाईसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथजी के समय की ज्ञात हुई। महाराज साहेब ने चौमासा एवं विहार के समय सारे देश में इस पावन तीर्थ की महिमा लोगों को बताई और इस तीर्थ की यात्रा के लिए उन्हे प्रेरित किया । समग्र भारत वर्ष से तीर्थ यात्री भोपावर आने लगे। तीर्थ पर आमदनी शुरू हुई और मन्दिर के जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया गया । तीर्थ स्थल पर एक पेढ़ी कायम की गई जिसका नाम श्री शान्तिनाथ. जैन श्वेताम्बर मन्दिर ट्रस्ट (पेढ़ी) रखा गया । सुरत निवासी सेठ चुनीभाई मन्छूभाई की धर्मपत्नी सेठानी कंकूबाई की तरफ से राजगढ़ में ठहरने के लिए धर्मशाला बनाई गई। श्री संघ के निवेदन पर तात्कालीन रियासती शासक जिवाजी राव शिंदे ने यात्रियों के लिए सरदारपुर से भोपावर तक पक्की सड़क बनवा दी। माही नदी पर सरदारपुर नगरपालिका ने एक पुल का निमार्ण करवाया जिससे भोपावर का आवागमन सुगम हो गया; एवं मन्दिर की प्रसिद्धि बढ़ने लगी । मन्दिर का शिखर, वर्तमान काँच का नया मण्डप एवं आगे
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का रंग मण्डप नये बनवाये गये । सेठ आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी गोड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर से भी सहायता गुरुमहाराज सा. की प्रेरणा से प्राप्त हुई । मन्दिर में काँच की सुन्दर कारीगरी का कार्य कुशल कारीगरों से करवाया गया । खम्भों एवं दीवारों पर कथानक चरित्र तथा शिलालेख काँच में अंकित करवाये गये । जिससे मन्दिर के सौन्दर्य में चार चाँद लग गये ।
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वर्तमान मन्दिर दो मन्जिला है। नीचे की मन्जिल पर नए सभा मण्डप में द्वार के एक और सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज एवं भेरूजी की प्रतिमा है तथा दूसरी और मणिभद्रजी, जम्बुस्वामीजी गौतमस्वामीजी, आत्मारामजी महाराज साहेब की प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त मानभद्रजी एवं क्षेत्रपालजी की मूर्तियाँ भी है । मन्दिर में प्रवेश करते ही दो विशाल हाथी बने हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे आपके स्वागत के लिए तत्पर हों । द्वार पर ही रावणमन्दोदरी के सुन्दर चित्र बनें हुए हैं। द्वार के ठीक ऊपर अष्टापदजी तीर्थ का सुन्दर चित्र बना हुआ है। ठीक सामने मूलनायक भगवान श्री शान्तिनाथजी की भव्य प्रतिमा है। उनके चरणों के पास इन्द्रइन्द्राणी की मूर्ति है। उपर मस्तक के पास शान्तिनाथजी एवं चन्दाप्रभुजी की श्वेतवर्णी प्रतिमा है। मूलनायक की प्रतिमा के दोनो ओर स्वस्तिक बने हुए हैं। उनके आभा मण्डल के पीछे एक चक्र बना हुआ हैं तथा प्रभु की प्रतिमा के ठीक उपर रजत छत्र लगा हुआ है । बाहर भगवान नेमिनाथजी एवं ऋषभदेवजी की प्रतिमा है । मूलनायक का लेप करवाकर पुनः प्रतिष्ठा प्रातः स्मरणीय गणधर भगवन्त श्री सुधर्मा स्वामीजी की पुण्यवंती पाट परंपरा में आए हुए 1008 पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्रीमद् सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज साहेब के वरद हस्त से संवत 1983 में हुई । अतीत में उन्होने जीर्णोद्धार का जो कार्य किया, उसे यह मालव माटी कभी भी विस्मृत नहीं कर पाएगी। मन्दिर में श्री वल्लभसूरीजी म. सा. की प्रतिमा भी है, नीचे के नूतन सभा मण्डप में शत्रुंजय तीर्थ का विशाल मॉडल, काँच का आगम मन्दिर, गुरु मन्दिर, हीरसूरिजी महाराज द्वारा अकबर बादशाह को प्रतिबोध, आगरा निवासी चम्पाबहन की 6 माह की उपवास की तपश्चर्या तथा शान्तिचंद आचार्य को बादशाह
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का दिया गया फरमान आदि दर्शनीय है । रंग मण्डप में श्री शान्तिनाथ भगवान के 10 भव, श्रीपाल राजा के 10 भव, , श्रीपाल - चरित, नेमिनाथ भगवान की बारात का दृश्य, 16 मूर्तियों के चित्र, ब्राह्मी सुन्दरी के द्वारा बाहुबलीजी को उपदेश, नरक की यातनाओं के दृश्य आदि कथानकों का चित्रण है। इसके अतिरिक्त गरुड़ यक्ष, शान्तिनाथ भगवान के पगलियाजी, अंबाजी की खेत से प्राप्त श्वेतवर्णी दर्शनीय प्रतिमा एवं अन्य सुन्दर चित्र रंगमण्डप में स्थित है ।
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ऊपर की मन्जिल पर श्री पार्श्वनाथ भगवान के 10 भव तथा अन्य कई कथानकों का चित्रण है। साथ ही ऊपर नये हाल में पद्मावति माताजी के मस्तक पर श्री खामणा पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है। साथ ही हाल में सहस्त्रफणा पार्श्वनाथजी की प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा श्री पुष्पसेन पानाचंदजी जवेरी परिवार, सुरत वाले हाल मुकाम मुम्बई द्वारा की गई। आगे हाल में शंखेश्वर पार्श्वनाथ शत्रुंजयावतार श्री आदेश्वर वादा, श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ केआईल पेंट से बने भव्य चित्र हैं।
सुरत निवासी श्री गेलाभाई रतनचंद नें यात्रियों के विश्राम हेतु एक बगीया बनवाकर भेंट की । मन्दिर का शिखर भी उनकी मदद से बना । गुजरात के अन्य भाइयों ने तीर्थ जीर्णोद्धार का कार्य आगे बढ़ाया। उन्होने पेढ़ी का नया भवन बनवाया, शिखर के पास ही दूसरी मन्जिल बनाई गई जिसमे पद्मादेवी के मस्तक पर स्थित खामणा पार्श्वनाथ की श्यामवर्णी प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। यह प्रतिमा पूज्य आचार्य धर्मसूरीश्वरजी की प्रेरणा से बड़ौवा से प्राप्त हुई थी । चन्दा प्रभुजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा पूज्य विजय सागरजी एवं क्षमा सागरजी की निश्रा में तत्कालीन व्यवस्थापक बागमलजी प्रेमचन्दजी के द्वारा हुई । इसके साथ ही पोष विदि दशमी को पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक उत्सव भी आयोजित होने लगा । इस मन्दिर पर ध्वजा भी चढ़ाई जाती है । यह तीर्थ स्थल अत्यन्त प्राचीन होने के साथ वैभवशाली भी है, एवं मालवांचल का गौरव है ।
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* भोपावर का ऐतिहासिक महत्व *
भोपावर न केवल प्राचीनकाल में बल्कि मध्यकाल एवं आधुनिक काल में भी भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर रहा है। इस नगर का अभ्युद्य ही प्राचीन भारत की महान घटनाओं में से एक है। कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का विवाह रुक्मी को पौत्री रोचना के साथ तय हुआ । अनिरुद्ध के विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए श्री कृष्ण, बलरामजी, रुक्मणीजी, प्रद्युम्न आदिद्वारकावासी भोजकुट (भोपावर) में पधारे थे। भोपावर (भोजकुट) का प्राचीन काल से ही अमझेरा से गहरा सम्बन्ध रहा है। जिसकी परछाई भारतीय इतिहास के मध्यकाल एवं आधुनिक काल में भी देखी . जा सकती हैं।
सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मालवांचल की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वतंत्रता के महायज्ञ में अनेक रणबांकुरों में अपने प्राणों की आहुति देकर इस मालवमाटी का गौरव बढ़ाया है। आजादी के महासमर में ऐसे ही एक बलिदानी राणा बख्तावरसिंह थे, जिन पर न केवल इस मालवमाटी को अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष को अभिमान है। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय महाराणा बख्तावरसिंह अमझेरा के राजा थे। उनके पिता का नाम राव राजा अजीतसिंह व माता का नाम इन्द्रकुँवर था । वे बाल्यकाल से ही महान योद्धा, दृढ़ निश्चयी होने के साथ आजादी के दीवाने थे। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अमझेरा मालवा की सबसे पहली रियासत थी जिसका उद्देश्य मालवा से कंपनी राज्य समाप्त करना था । इसी संदर्भ में महाराजा बख्तावरसिंह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
भोपावर एजेंसी स्थित अमझेरा के वकील 2 जुलाई 1857 को सायं 4 बजे अमझेरा आ गए। वकील ने अमझेरा आने का कारण बताया था कि उसके परिवार में कोई व्यक्ति सख्त बीमारथा । उन्होने भोपावर के केप्टन एचिसन से आदेश प्राप्त नहीं किया था । वे बिना
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किसी आदेश एवं अनुमति से भोपावर छोड़कर अमझेरा चले आए।
3 जुलाई 1857 को अमझेरा के दीवान गुलाबराय सशस्त्र सिपाहियों के साथ भोपावर ऐजेन्सी आए। उनके साथ संदला के ठाकुर भवानीसिंह भी थे । भवानीसिंह के पास 2 बंदूकें थी । उन्होने ऐजेन्सी के कर्मचारियों को बंदी बना लिया और समस्त शासकीय वस्तावेज समाप्त कर दिए। इसी समय अमझेरा के सैनिकों ने रोष में आकर ब्रिटीश झंडा फाड़ डाला और उसे एजेन्सी से हटा दिया । केप्टन एचिसन और उसके दल का भोपावर से 27 कि.मी. आंदोलनकारियों ने पीछा किया। आंदोलनकारियों के दल का नेतृत्व अमझेरा के श्री मोहनलालजी ने किया था । -
अमझेरा के सिपाहियों ने भोपावर का पोस्ट ऑफिस, चिकित्सालय एवं एजेंसी हाउस नष्ट कर दिया। सिपाहियों के सहयोग के लिए कुछ स्थानीय नागरिक भी साथ हो गए। ये लोग तोड़फोड़ कर पास के जंगलों में भाग जाते थे । इस प्रकार भोपावर
अमझेरा के सिपाहियों ने विद्रोह का शंख फूंक दिया। अमझेरा के सिपाहियों का विद्रोह भोपावर एजेंसी के लिए एक चुनौती हो गई थी । सन् 1857 के आंदोलन सम्बन्धी दस्तावेज (जो की राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली में है) के अध्ययन से यह विदित होता है कि 1857 के विद्रोह में अंग्रेज अधिकारियों को अपने परिवार सहित भोपावर से भागना पड़ा था ।
होल्करों की नीति अमझेरा के प्रकरण में कूटनीति पूर्ण रही । अंग्रेज़ महाराणा बख्तावरसिंह से भयभीत हो चुके थे और वे समझ चुके थे कि उन्हें सरलता से पकड़पाना संभव नहीं है। अतः उन्होने महाराणा बख्तावरसिंह को 13 नवम्बर 1857 को छल पूर्वक बन्दी बनाया, उन पर महज दिखावे के लिए मुकदमा चलाया गया एवं 10 फरवरी 1858 को उन्हें इन्दौर के एम. टी. एच. ग्राउन्ड पर फाँसी वे दी गई | महाराणा बख्तावरसिंह व उनके साथियों ने हँसते हँसते इस देश की सेवा में अपना प्राणों की आहुति दे दी। उनके इस बलिदान को शत्-शत् नमन् ।
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* तीर्थ का जीर्णोद्धार *
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जिन शासन की गौरवगाथा को प्रतिबिंबित करने वाला श्री भोपावर महातीर्थ लगभग 87000 वर्ष प्राचीन है। मालवा के मस्तक पर तिलक स्वरूप यह तीर्थजैन धर्म का यशोगान करते हुए शान्ति की श्रद्धास्थली बन गया है। इस तीर्थ का तीर्थोद्धार वर्तमान युग की एक महान धार्मिक घटना है। इस तीर्थ के विकास की यात्रा बहुत लम्बी है।
संवत 1978 में पूज्य आचार्य आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराज, प्रातः स्मरणीय गणधर भगवन्त श्री सुधर्मा स्वामीजी की पुण्यवंती पाट परंपरा में आये हुए पूज्य श्रीसागरानंद सूरीश्वरजी महाराज और पन्यास प्रवर श्री मोतीविजयजी महाराज आदि गुरू भगवंतों ने इस तीर्थ के विकास के कार्य को आगे बढ़ाया और यह तीर्थ सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्धि पाने लगा।
इस तीर्थ के उदभव से लगाकर अब तक इतिहास ने कई करवटें बदली हैं। अत्यंत प्राचीन होने के कारण यह तीर्थ अत्यंत ही जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका था, इसलिए इसका जीर्णोद्धार
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अत्यंत आवश्यक था। जैसा कि मैनें पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि इतिहास रेखा-प्रस्तर नहीं होता, इसके अनेक प्रमाण हे यथा खंबात का चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिरजोई.सन्1108 में बनवाया गया था, और सन् 1295 में इसका जीर्णोद्धार करवाया गया था। वहां के लेखों से पता चलता है कि वह समय-समय पर मालवा, सपवलक्ष तथा चित्रकूट के अनेक धर्मानुयायियों के विपुल दान के द्वारा समृद्ध बनाया गया था । हमारा प्रयास भी इसी दिशा में है। भगवान श्री शान्तिनाथजी की प्रतिमा भव्य एवं शोभावान दिखे इसलिए भव्यातिभव्य जिन मन्दिर के नवनिर्माण का निश्चय किया गया ।
पूर्ण रूप से नवनिर्मित होने वाले जिन मन्दिर के तीर्थोद्धार की जानकारी श्री जिन शासन के लगभगा समस्त गीतार्थ पूज्य आचार्य भगवंटो को देने पर सभी कृपावंतो ने वासक्षेप भेजकर इस पुनीत कार्य के लिए अपना शुभाशीष प्रदान किया। अनेक प्रतिष्ठित एवं अनुभवी जिन मन्दिर निर्माण करने वाले सोमपुराओं से मन्दिर के लिए विविध नक्शे तथा खर्च आदि की जानकारी निकाली ठाई अंततः एक अद्भुत, विशिष्ट नक्काशी वाले तथा उच्च शिखर वाले मन्दिर के नक्शे/मॉडल को अन्तिम रूप दे दिया गया। इस जिनालय के निर्माण का कुल खर्च लगभग 15 करोड़ रुपये आँका गया है।
जीर्णोद्धार के कार्य में परम पूज्य आचार्यदेव श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज पहधर, समुदाय के गौरव मालव देशोद्धारक परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज के सुशिष्य रटन मालव भूषण, वर्द्धमान तपोनिष्ठ परम पूज्य आचार्य देवेश श्री नवरत्नसागरसूरीश्वरजी महाराज का मंगलमय आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से संभव हो रहा है। ___ 12 दिसंबर 2002 के शुभ दिन जिनालय के भूमिपूजन द्वारा तीर्थोद्धार के कार्य का शुभांरभ हुआ | पूना निवासी परम गुरुभक्त शाह हंसराजजी धर्माजी कटारिया परिवार ने उदारता पूर्वक बोली
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र बोलकर भूमिपूजन किया।
इस शुभ अवसर में मंगल स्वरूप मालवा के इतिहास में प्रथम बार 1600 तेले का (अठम) का आह्वान किया था, जो पूर्ण हुआ। भूमि पूजन तथा 1600 तेले का सम्पूर्ण लाभ इन्दौर निवासी श्रीमती ललिताबेन हिम्मतभाई ओघवजी गाँधी परिवार ने लिया था। इसके बाद भूमि पूजन स्थल पर 60 फीट लम्बा 60 फीट चौड़ा तथा 27 फीट गहरा गड्डा खोदा ठाया । 5 जून को शुभ मुहूर्त में जिनालय का भव्यातिभव्य शिलान्यास समपन्न हुआ। इस अवसर पर 16000 आयंबिल का ऐतिहासिक आह्वान किया गया था, तथा बड़े पैमाने पर गाँव-गाँव आयंबिल आराधना हुई।
. शिला स्थापना समारोह का सम्पूर्ण लाभ राधनपुर निवासी मातुश्री कंचनबेन रसिकलाल गाँधी परिवार, मुम्बई ने लिया था। शिलान्यास समारोह संपन्न होते ही युद्ध स्तर पर विशाल गड्डे को पत्थरों की जुड़ाई करके भरा गया तथा नींव इतनी मजबूत बनाई ठगई कि भूकम्प के बड़े झटकों का भी जिनालय पर कोई असर न । हो।
___ मन्दिर का जीर्णोद्धार का कार्य द्रुतगति से चल रहा है। पू.आचार्य श्री नवरटनसागर सूरीश्वरजी म.सा. के मार्गदर्शन तथा प्रेरणा से चल रहे, इस तीर्थोद्धार के कार्यको परम गुरूभक श्रेष्ठिवर्य श्री रमणलालजी जैन (मोन्टेक्स ग्रुप) ने अभूतपूर्व सहयोग देकर उठा लिया, उन्ही के नेतृत्व में तीर्थोद्धार का कार्य चल रहा है। शान्तिनाथ प्रभु के इस तीर्थ का कार्य सुन्दर एवं श्रेष्ठ हो इस हेतु श्रेष्ठिवर्य श्री कुमारपाल भाई वी.शाह, थोलका वालों ने भी पूरा - पूरा सहयोगा एवं माठदिर्शन दिया।
टीर्थ के संचालन एवं जिनालय निर्माण आदि सम्पूर्ण कार्य को धार निवासी श्रेष्ठिवर्य श्री सुरेन्द्रकुमारजी राजमलजी जैन (पेट्रोल पंप वाले) ने सुन्दर रूप से संभाला है। सोमपुरा महेन्द्रभाई माण्डवी, पालीताणा वालों ने इस भव्य जिनालय के डिज़ाईन, - नक्शे आदि बनाकर इस तीर्थ को अद्वितीय रूप देने का संकल्प
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लिया है। बंसी पहाड़पुर खदान के श्रेष्ठ गुलाबी पत्थरों के द्वारा जिनालय के निर्माण का कार्य द्रुत गति से चल रहा है।
4 जून 2003, बुधवार को सोलहवें तीर्थंकर भगवान श्री शान्तिनाश्र प्रभु का 108 अभिषेक विभिन्न नदियों के एवं पवित्र जलकुण्ड के जल तथा औषधियों से मन्त्रोच्चार के साथ किया गया। भोपावर महातीर्थ में शिला स्थापना महोत्सव दिनांक 5 जून 2003, गुरुवार को सम्पन्न हुआ, जिसका पुण्य लाभ निम्न भाग्यशालियों को मिला
मुख्य शिला
अग्रिकोण शिला उतर शिला
वायव्य शिला
ईशान शिला
पश्चिम शिला
पूर्व शिला नैरुत्य शिला
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श्री सुमेरमलजी कानमलजी सदानी (सरत वाले), बैंगलोर
श्री चन्द्रसेन भाई अभेचन्दजी झवेरी, मुम्बई श्री रमण भाई जैन (मोण्टेक्स ग्रुप), मुम्बई श्री कस्तूरचन्दजी बापूलालजी परिवार श्रीजसुभाई महेन्द्रभाई, मुम्बई
श्री निरंजन भाई गुलाबचन्द चोक्सी, मुम्बई श्री हर्षवराय वीरचन्द शाह श्री गिरीश भाई, मुम्बई
'सौ.अलकाबेन पंकजभाई गांधी, मुम्बई श्री सुरेन्द्रकुमारजी राजमलजी जैन (पेट्रोल पंप वाले), धार
श्री प्रदीपभाई गुलाबचन्दजी चौक्सी, मुम्बई
दक्षिण शिला
उर्ध्व शिला (सिद्ध शिला) एवं महातीर्थ के चौबीस महा अंग स्वरूप चौबीस तत्वो की सिद्ध-शिलाओं का स्थापना महोत्सव 28 फरवरी 2004 ( मिति फाल्गुन सुदी 8 ), शनिवार को मालवोद्धारक आचार्य भगवंत श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न एवं शंखेश्वर आगम मन्दिर के संस्थापक पूज्य पन्यास अभ्युदय सागरजी के लघु, गुरू- भ्राता भोपावर तीर्थोद्धार प्रेरक महान तपस्वी पूज्य आचार्य श्री नवरत्नसागर सूरीश्वरजी म. सा. एवं उनके शिष्य गणीवर्य श्री विश्वरत्नसागरजी म.सा. आदि साधु-साध्वी के शुभ सानिध्य में समपन्न हुआ ।
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उर्ध्व शिला (सिद्ध शिला) की स्थापना दानवीर जैनरत्न श्रेष्ठिवर्य श्री दीपचन्दजी एस. गार्डी, मुम्बई के कर कमलों से हुई, कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रमणलालजी जैन (मोण्टेक्स ग्रुप), मुम्बई ने की। इस अवसर पर विधि-विधान करवाने हेतु श्री रघुनाथजी शास्त्री (गायत्री पंचांग निर्माता) एवं तीर्थ शिल्पाचार्य श्री महेन्द्रभाई सोमपुरा, पालीताणा भी उपस्थित थे ।
महाप्रभावी श्री शान्तिनाथजी प्रभुजी के जिनालय के मुख्य प्रवेश द्वार से 40 फीट दूर 50 फीट की त्रिज्या में एक सुन्दर न्यास स्थान बनाया जायेगा । दाता परिवार के सदस्य की पूरे आकार की, प्रभु के दर्शन करती हुई मुद्रा में सफेद संगमरमर की मूर्ति बनाई जाएगी; इसके साथ ही परिवार की प्रशस्ति का एक सुन्दर शिलालेख भी लगाया जायेगा ।
महाप्रभावी श्री शान्तिनाथ प्रभुजी का ऐतिहासिक मन्दिर एक विशाल क्षेत्र में विस्तार लिए हुए है। इस तीर्थ भूमि का प्रवेश द्वारा अत्यंत कलात्मक तथा अति भव्य रूप में बनाने की योजना है । • प्रवेश द्वार पर दानदाता का नाम व प्रवेश द्वार के एक ओर 6 फीट की ऊँचाई वाला प्रशस्ति पत्र लिखा जायेगा ।
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मन्दिर के सभा मण्डप और कोली मण्डप का निर्माण कार्य भी द्रुतगति से चल रहा है। इस हेतु देव द्रव्य एवं साधारण खातों में द्रव्य की सख्त आवश्यकता है। आप अपनी शक्ति के अनुसार ट्रस्ट के नाम बैंक ड्राफ्ट भेजकर इस तीर्थ के विकास में सहभागी बने एवं पुण्य लाभ प्राप्त करें ।
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___ * नवीन जिनालय एक दृष्टि में...*
क्रमांक
विगत ..
-
लं o oo
o
लं + oo - लं
..ब्रह्म प्रासाद..
क्षेत्रफल मुख्य गर्भगृह
13'-7" x 13'-7' मुख्य गर्भगृह रेखाएं ___ 18'-1" x 18'-1' ब्रह्म गर्भगृह
27-1" x 27-11 मुख्य रेखाएं
35'-11" x 35'-11' गूढ़ मंडप
43'-11" x 43'-11' रंठा मण्डप
35'-11" x 35'-11' जिन मन्दिर की कुल लम्बाई 175' फीट जिन मन्दिर की कुल चौड़ाई 121' फीट शिखरजी की ऊँचाई 121' फीट
. .. जिन ग्रासाद का विवरण ... प्रासाद का नाम
श्री शान्तिनाथजी प्रासाद प्रासाद का श्रृंग
189 प्रासाद का तल भाग 12 बाराईतल प्रासाद की जाति नागराही जाति प्रासाद की दिशा
पूर्वाभिमुख प्रासाद का प्रियदेव श्री शान्तिनाथजी भगवान गूढ मण्डप का नाम सुरनंदन मण्डप रंगमण्डप का नाम विमानदि मण्डप
.. प्रासाद की आयादि.. प्रासाद उदय
20'-1" ध्वज आय प्रासाद बारसाख
. 12'-1'x6'-11" ध्वज आय प्रासाद की दूसरी भूमि 16'-9" ध्वज आय का आय
जिन मन्दिर का सुन्दर से सुन्दर निर्माण बंसी पहाड़पुर के श्रेष्ठतम् पत्थरों से होगा तथा जिन मन्दिर के अन्दर का सम्पूर्ण काम मकराना के श्रेष्ठतम् सफेद संगमरमर से होगा।
(28)
station
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महाप्रभावी प्रभु श्री शान्तिनाथ भगवान के निर्माणाधीन महाप्रासाद में महातीर्थ के 24 महाअंग स्वरूप 24 तत्वों की सिद्ध शिलाओं की स्थापना हेतु भारतभर के निम्न प्रमुख जैन तीर्थ ट्रस्ट मण्डल एवं जैन श्रीसंघों को आमंत्रित किया एवं उन्होने पधारकर हमारे उत्साह को द्विगुणित किया
श्री सेठ आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट
अहमदाबाद
श्री सेठ जीवनदास गोड़ीदास शंखेश्वर पार्श्वनाथ ट्रस्ट शंखेश्वर तीर्थ
श्री के.पी. संघवी रिलीजियस ट्रस्ट
पावापुरी तीर्थ
श्री सुमतिनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट, मालगाँव संघ
मालगाँव
श्री भेरुतारक धाम तीर्थ
श्री जैन श्वे. नागेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ पेढ़ी
श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री राज राजेन्द्र तीर्थ दर्शन ट्रस्ट
श्री पार्श्वनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. ट्रस्ट
श्री पद्मप्रभु कल्याणजी जैन श्वे. पब्लिक ट्रस्ट श्री जैन श्वे. तीर्थ पेढ़ी
श्री अमीझरा पार्श्वनाथ जैन श्वे. तीर्थ
श्री भक्तामर महातीर्थ, अभ्युदय धाम न्यास
श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ मारवाड़ी समाज ट्रस्ट
श्री ऋषभदेव छगनीराम पेढ़ी ट्रस्ट
श्री जैन श्वे. पारसली तीर्थ
श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वे. पेढ़ी
रतलाम
श्री चन्दाप्रभु जैन देरासर ट्रस्ट
चेन्नई
श्री सुपार्श्वनाथ जैन उपाश्रय
मुम्बई
श्री गुजराती अंधेरी समाज, , विलेपार्ले
मुम्बई
श्री जवेरचन्दजी प्रतापचन्दजी सुपार्श्वनाथ जैन उपाश्रय मुम्बई
श्री शान्ताक्रुज जैन तपागच्छ जैन संघ
मुम्बई
श्री चौपाटी जैन श्रीसंघ
मुम्बई
श्री भन्डारीया जैन श्वे. महाजन मूर्तिपूजक संघ
मुम्बई
श्री सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ जैन श्वे. देरासर
मुम्बई
श्री उंझा जैन श्री संघ
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अनावरा (सिरोही).
नागेश्वर तीर्थ
"
मोहनखेड़ा तीर्थ
मोहनखेड़ा तीर्थ
तालनपुर
लक्ष्मणी तीर्थ
माण्डवगढ़ तीर्थ
अमीझरा तीर्थ
धारा नगरी
उज्जैन तीर्थ
उज्जैन तीर्थ
पारासली तीर्थ
उंझा
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* भोपावर की भौगोलिक स्थिति
मध्यप्रदेश के मानचित्र में भोपावर तीर्थ स्थल एक दैदिप्यमान नक्षत्र की भाँति है । सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रसिद्ध इस जैन तीर्थ स्थल का सम्मोहन ऐसा है कि जो भी व्यक्ति एक बार इस तीर्थ स्थल के दर्शन करता है, वह सदैव इसे तीर्थ के प्रति आर्कषण का अनुभव करता है। भोपावर तीर्थ स्थल इन्दौरअहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सरदारपुर तहसील मुख्याल से मात्र 6 कि.मी. दूर है। राजगढ़ नगर से इस तीर्थ की दूरी सरदारपुर होकर लगभग 12 कि.मी. है। वर्तमान में राजगढ़ नगर से भोपावर के लिए सीधे सड़क मार्ग का निर्माण कार्य जारी है। जिससे भोपावर तीर्थ स्थल की दूरी लगभग 9 कि.मी. रह जायेगी ।
भोपावर तीर्थ इन्दौर से लगभग 107 कि.मी. व धार से लगभग 47 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। हाल ही में सरदारपुर से भोपावर तक नवीन सड़क का निर्माण किया गया जिससे इस तीर्थ के लिए आवागमन अत्यंत सुगम एवं सुविधाजनक हो गया है। धार एवं इन्दौर से आने वाले यात्रियों के लिए फुलगाँवड़ी से भोपावर तक नवीन पक्की सड़क जो 5 कि.मी. है, का निर्माण किया गया हैं जिससे धार से भोपावर की दूरी मात्र 40 कि.मी. व इन्दौर से 100 कि.मी. हो जायेगी ।
यह अत्यंत आश्चर्य का विषय है कि इस प्राचीन एवं ऐतिहासिक जैन तीर्थ स्थल वाले ग्राम मे जैन समाज का एक भी घर नहीं है । मूलत: यह वनवासी क्षेत्र है । आसपास के गांवो में यहां भील - भिलालों की बस्ती है । गाँव के लोग सह्रदय एवं भोलेभाले हैं।
भोपावर प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है । यह नगर एवं तीर्थ पुण्य सलिला माही के तट पर यह बसा हुआ है । भोपावर के अत्यंत समीप ही मिण्डा गांव है, जो माही का उद्गम स्थल है। भोपावर की जलवायु समशितोष्ण एवं स्वास्थ्यप्रद है । तीर्थ के चारों ओर हरियाली छाई हुई है। ग्रीष्म ऋतु में भी यह स्थान अत्यंत शीतल
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* व सुहावना रहता है । यहां वर्ष-भर हरियाली छाई रहती है।
मन्दिर का मुख पूर्व दिशा में है। जिससे सूर्य की स्वर्णिम रश्मियाँ इस मन्दिर के विशाल प्रवेश द्वार को प्रातः काल से ही स्पर्श कर प्रभु के प्रति आस्था प्रकट करती है । मन्दिर के सम्मुख थोड़ी दूर पर ही आम एवं अमरूद के वृक्षों से घिरा एक सुन्दर बगीचा है जिसमें निर्मल जल से युक्त एक बावड़ी है। इस बगीचे मे हनुमानजी का अत्यंत प्राचीन मन्दिर स्थित है । भोपावर स्थित जैन तीर्थ स्थल में जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर भगवान श्री शान्तिनाथजी की भव्य प्रतिमा इस तीर्थ के आर्कषण का केन्द्र है।
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umanita
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* तीर्थ पर आयोजित होने वाले उत्सव*
' किसी भी तीर्थ स्थल पर आयोजित होने वाले उटसव, हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के संवाहक है । भोपावार तीर्थ स्थल पर प्रतिवर्ष मुख्य रूप से टीन उटसवों का आयोजन किया जाता है।
प्रथम उटसव : श्री पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक उत्सव है, जो पौष विदि दशमी को मनाया जाता है। इस अवसर पर त्रिदिवसीय (नवमी, दसमी, ग्यारस) महोटसव का आयोजन किया जाता है। तीन दिनों तक पूजा, रथयात्रा, भगवान की अंगरचना, रात्रि में भक्तिभावना व रोशनी आदि की जाती है, एवं स्वामीवाटसल का आयोजन होता है । सम्पूर्ण भारत वर्ष से दर्शनार्थी पुण्यफल प्राप्त करने हेतु इस उत्सव में आते है। इस अवसर पर अनेक लोग अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं। और उनकी मनोकामनाएँपूर्ण भी होती हैं। यहाँ के अधिष्ठायक देव जागृत हैं; वे भी अपना निजी उत्सव यहाँ रचाते हैं। इस अवसर पर यहाँ पर तीन दिवसीय आकर्षक मेला भी लगता है; जिसमें हजारों जैन एवं जैनेत्तर बंधु मेले का आनंद उठाते हैं। मेले में अनेक आकर्षक दुकाने एवं स्वस्थ मनोरंजन के अनेक साधन दूरांचलों से आते है। इन दिनों उटसव में आने के लिए राजगढ़ एवं सरदारपुरनठार से स्पेशलवाहन सुविधा उपलब्ध रहती है।
दूसरा उटसव : यह होली के दूसरे दिन आयोजित होता है। इस दिन आदिवासी लोग बड़े भक्ति-भावना से मन्दिर में आते हैं तथा भगवान के दर्शन करते है। वे मन्दिर की परिक्रमा कर , स्वस्तिक बनाकर अपनी आस्था प्रकट करते है।
टीसरा उत्सव :ज्येष्ठ विदि 13 (गुजराती) को मनाया जाता है। इस दिन भोपावर तीर्थ के मूलनायक भगवान श्री शान्तिनाथजी काजन्मकल्याणकएवं मोक्ष कल्याणक महोटसव अत्यन्त उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इसके अतिरिक्त यहाँ पर अनेक उटसव मनाए जाते हैं। प्रतिवर्ष इस तीर्थ स्थल पर वाहन एवं पैदल संघ आते हैं।
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* तीर्थ पर उपलब्ध झुविधाएँ * ___ भोपावर तीर्थ स्थल उत्तरोत्तर विकास के मार्ग पर अग्रसर है। जहाँ एक शताब्दी पूर्व इस तीर्थ पर व्यवस्थाएँ नगण्य थी, वहीं विगत कुछ वर्षों से तीर्थ ने विकास के नये आयाम स्थापिटत किये है, और इस तीर्थ पर चहुंमुखी विकास हुआ है।
टीर्थ पर ठहरने हेतु एक विशाल नवनिर्मित धर्मशाला है, जो सर्वसुविधा युक्त है। इस धर्मशाला में 20 कमरे हैं जो स्वच्छ, साफ-सुथरे एवं हवादार है। संघो के ठहरने के लिए यहाँ 2 विशाल हॉल है । यहाँ पर स्वच्छ पेयजल की उत्तम व्यवस्था है। इसके साथ ही राजगढ़ नगर में भी तीर्थ की धर्मशाला है।
मुख्य मन्दिर के बाहर परिसर में एक विशाल उपाश्रय है जहाँ साधु-संटा ठहरते हैं। उपाश्रय के बाहर ही श्री शान्तिनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट की पेढ़ी है। साधु भगवंत की वैयावच्च, गोचरी आदि की व्यवस्था है।
इस तीर्थ पर सर्वसुविधायुक्त, अत्याधुनिक एक विशाल भोजनशाला का निर्माण किया गया है। यह भोजनशाला सदैव चालू रहती है। यहाँ व्रतधारियों के लिए 12 माह पीने के गर्म पानी की व्यवस्था उपलब्ध रहती है। भोजनशाला में संघ के आने की अग्रिम सूचना पर विशेष व्यवस्था की जा सकती है। भोजनशाला का नवीन हाल इतना बड़ा है कि इसमें पांच सौ व्यक्ति एक साथ भोजन कर सकते है। पूर्व सूचना होने पर आयंबिल की व्यवस्था भी की जाती है। प्रायः भोजन की सभी तिथियाँ भरी जा चुकी हैं। फिर भी वर्तमान महंगाईको देखते हुए यात्रियों से आर्थिक सहयोठा की अपेक्षा है।
तीर्थ स्थल पर अत्याधुनिक एवं सर्वसुविधायुक्त 200 कमरों की एक विशाल नई धर्मशाला निकट भविष्य में बनाने की योजना
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* समीपस्थ तीर्थ स्थल
भोपावर तीर्थ स्थल एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है। इस तीर्थ स्थल के समीप ही मोहनखेड़ा, अमिझरा पार्श्वनाथ, भक्तामर तीर्थ (धार), माण्डवगढ़, हासामपुरा, लक्ष्मणी, वालनपुर, उज्जैन, मक्सी, नागेश्वर परासली, बिबड़ौद, सेमलिया आदि हैं।
भोपावर से मात्र 12 कि.मी. की दूरी पर प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल श्री मोहनखेड़ा स्थित है। इस तीर्थ स्थल पर आदेश्वर भगवान का मन्दिर एवं राजेन्द्रसूरीजी म.सा. का समाधि स्थल है। समीप ही अत्यंत आकर्षक एवं दर्शनीय म्यूज़ियम (श्री राज राजेन्द्र तीर्थ दर्शन) है। जिसमें जैन धर्म, दर्शन, तत्व, इतिहास आदि का सुन्दर समन्वय हैं।
पास ही राजगढ़ नगर में 6 अन्य जैन मन्दिर है । हाथीवाला I मन्दिर में मूलनायक भगवान महावीर स्वामी की भव्य प्रतिमा है, जो अमझेरा से लाई गई थी; इसी मन्दिर में 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथजी की 1100 वर्ष पुरानी प्रतिमा है। जो बोला से लाई गई थी । अन्य मन्दिर भगवान श्री आदेश्वर, श्री अष्टापद मंन्दिर, श्रीशान्तिनाथ भगवान तथा श्रीराजेन्द्रसूरिजी के हैं।
भोपावर से लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर अमिझरा पार्श्वनाथ की अत्यंत प्राचीन् प्रतिमा है जो 1000 वर्ष प्राचिन बताई जाती हैं, प्रतिमाजी से कई बार अमि झरणें होते ही रहते हैं इसी वजह से इसे अमिझरा पार्श्वनाथ के नाम से पुकारा जाता है। इस तीर्थ के लिए कहा जाता है
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प्रभु प्रतिमा से अमी झरी, सो अमीझरा कहलाए । पार्श्व प्रभु की सुन्दर प्रतिमा, श्रद्धा भक्ति जगाए ॥
यहां पर अमकाजी - झमकाजी का दर्शनीय मन्दिर स्थित है । इस स्थल पर रुक्मिणी हरण के समय भगवान श्रीकृष्ण के रथ के पहिये के निशान आज भी मौजूद हैं।
भोपावर से लगभग 45 कि.मी. की दूरी पर धार नगर में 34
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भक्तामर तीर्थ अत्यंत आकर्षक है। यह तीर्थ वर्तमान आचार्य पूज्य श्री नवरत्नसागरजी की प्रेरणा से आकार ले रहा है । यहाँ पर I प्र. श्री अभ्युदयसागरजी म. सा. कि समाधि भी है ।
धार जिला मुख्यालय से लगभग 35 कि.मी. एवं भोपावर तीर्थ से लगभग 80 कि.मी. की दूरी पर विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मांडवगढ़ स्थित है। इस ऐतिहासिक नगर में जैन धर्म के 7 वें तीर्थकर सुपार्श्वनाथजी एवं 16 वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथजी के अत्यंत प्राचीन मन्दिर है । इस तीर्थ के लिए कहा जाता है
'मांडवगढ़ नो राजीयो नाम देव सुपास'
भोपावर तीर्थ स्थल से लगभग 120 कि.मी. की दूरी पर लक्ष्मणी तीर्थ स्थित है। इस तीर्थ स्थल पर छठें तीर्थंकर व तीर्थ के मूलनायक श्री पद्मप्रभु की 4 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा है ।
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राजगढ़ नगर से लगभग 70 कि.मी की दूरी पर तालनपुर स्थित है । जो प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल है, यहां पर मुख्य रूप से दो मन्दिर है । जिनमें मूलनायक आदिनाथजी एवं गोड़ीपार्श्वनाथजी की प्रतिमा हैं ।
उज्जैन में अवन्ति पार्श्वनाथ की श्यामवर्णी प्रतिमा अर्द्ध पद्मासन मुद्रा में स्थित है। मक्सी में मक्सी पार्श्वनाथ, नागेश्वरजी तीर्थ में नागेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा, बिबड़ौद तीर्थ स्थल में मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान की श्यामवर्णी प्रतिमा है, सेमलियाजी तीर्थ स्थल में शान्तिनाथ भगवान की श्यामवर्णी प्रतिमा, श्री परासली में मूलनायक श्री आदिश्वर भगवान की पद्मासन प्रतिमा स्थित है।
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* तीर्थ के लिए आवागमन के साधन *
भोपावर तीर्थ स्थल इन्दौर-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सरदारपुर से मात्र 6 कि.मी. एवं राजगढ़ नगर से 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। तीर्थ यात्रियों को राजगढ़ अथवा सरदारपुर से तीर्थ के लिए तत्काल वाहन उपलब्ध हो जाते हैं। राजगढ़ से बस, टेक्सी, टेम्पो आदि वाहन सुविधा भोपावर तीर्थ के लिए उपलब्ध है ।
सीधी गाड़ियाँ यहाँ निम्न समय पर आती है --
प्रात: 10.30 बजे प्रातः 11.00 बजे
धार - राजगढ़ प्रातः 11.30 बजे धार - राजगढ़ दोप. 12.00 बजे
वसाई - पारा वसाई - धार
इसके अतिरिक्त राजगढ़ से धार, इन्दौर, उज्जैन, भोपाल, झाबुआ, दाहोद, बड़ौदा, अहमदाबाद आदि अनेक शहरों के लिए सुगमता से बस उपलब्ध हो जाती है। राजगढ़ नगर से निकटतम रेलवे स्टेशन मेघनगर है जो यहा से लगभग 65 कि.मी. की दूरी पर स्थित है । इस रेलवे स्टेशन से देश के लगभग हर प्रांत के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है ।
राजगढ़ - कुक्षी मार्ग पर स्थित रिंगनोद से भोपावर की दूरी लगभग 7 किमी. है। भोपावर से सरदारपुर के लिए कच्चा मार्ग मात्र 1 मील का है । यहाँ अधिक वर्षा होने पर भी माही पर बाढ़ का पानी 1-2 घण्टे में उतर जाता है ।
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* भविष्य की स्वर्णिम योजनाएँ
भोपावर तीर्थ स्थल उत्तरोत्तर विकास के पथ पर अग्रसर है. तीर्थ के ट्रस्टीगण के अथक प्रयास से तीर्थ अपने चरमोत्कर्ष पर है । इस तीर्थ के विकास हेतु अनेक भावी योजनाएँ हैं, जो निम्नानुसार है -
1. उपाश्रय एवं व्याख्यान के लिए एक बड़ा हाल बनाना ।
2.
एक अत्याधुनिक 200 कमरों की नवीन धर्मशाला का निर्माण करना ।
3. वृद्धाश्रम तथा बोडींग का निर्माण करना । 4. स्वाध्याय केन्द्र खोलना ।
5. आदिवासियों के लिए निःशुल्क चिकित्सालय खोलना | 6. प्राचीन मूर्तियों का एक संग्रहालय बनाना ।
7. साधु-सन्तों के लिए पठन-पाठन का केन्द्र बनाना ।
8. यात्रियों की सुविधा के लिए एक नया बस स्टेण्ड तथा यात्री प्रतिक्षालय बनवाना |
9. गौशाला का निर्माण करना ।
10. तीर्थ की शेष भूमि पर वाल बाउंड्री का निर्माण करना ।
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ए
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* तीर्थ एवं प्रतिमा का प्रभाव
भोपावर तीर्थ स्थल की महिमा अनंत है । इस तीर्थ स्थल पर अनेक ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो इस तीर्थ एवं भगवान शान्तिनाथजी -की दिव्य प्रतिमा के प्रभाव को परिलक्षित करती हैं। हम ऐसी ही कुछ घटनाओं का उल्लेख यहाँ पर कर रहे हैं।
संवत 1972 भादव महीने में मूलनायक भगवान श्री शान्तिनाथजी के मूल गर्भ गृह में चार दिन तक 15 डिब्बों के लगभग दूध निकला जिसे यहाँ के कर्मचारियों, व्यवस्थापक एवं हजारों नर-नारियों ने प्रत्यक्ष देखा ।
संवत 1990 के आसौज माह में मूलनायक श्री शान्तिनाथजी के पाँव में एक सर्प आकर लिपटकर बैठ जाता था । जब पुजारी प्रक्षाल करने आता था तो उसके करबद्ध विनय करने पर सर्प उसी a वहां से निकलकर आगे मणिभद्रजी के यहाँ लिपटकर बैठ जाता था । उस स्थान पर पुनः विनती करने पर सर्प देवता अदृश्य जाते थे | यह अद्भूत चमत्कार लगभग एक माह तक लगातार 1 चलता रहा ।
संवत 2026 के ज्येष्ठ माह में मलाड़ मुम्बई वाले सेठ भाग्यशाली देवचन्द भाई 600 व्यक्ति का संघ लेकर सम्मेतशिखरजी से भोपावर करीब 10 बजे पधारे। कुछ यात्री पूजा कर रहे थे कि अकस्मात दोपहर 12 बजे भगवान के मस्तक पर अमृत झरने लगा। पूजन करने वालो ने बार-बार अंगलुणा करने पर भी अमी झरना बंद नहीं हुआ बाद में संघ के यात्री वहीं ठहरे एवं भक्ति-भावना करते रहे ।
संवत 2030 भादवा सुदी 15, बुधवार को भगवान के चरण में केसरिया पानी घुटनो तक भर जाता था, उसे पूरा साफ करने पर अगले दिन पुनः पानी भर जाना किसी आलौकिक शक्ति का ही परिणाम हो सकता है। रात्रि में कभी-कभी मन्दिर में, मन्दिर मंगल होने के बाद भी घुँघरूओं की आवाज सुनाई देती है। तब ऐसा प्रतीत
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होता है मानो कोई भक्ति भावना कर रहा हो। इस तीर्थ पर कभीकभी माग्यशालियों को सफेद सर्प दिखाई देता है तब ऐसा लगता है, मानो अधिष्ठायक देव प्रत्यक्ष रूप से वर्शन दे रहे हों।
तीर्थ यात्रा पर आई एक महिला की सोने की अDठी गुम हो गई थी, भगवान से प्रार्थना करने पर वह अगूंठी उसके सामने ही पड़ी मिली। दिनांक 16-12-76 पोष विवी 10 को एक जैनेटर भाई श्री ठोबले बाबू की घड़ी गुम जाना और वापस मिल जाना अद्भुत चमत्कार है। - पूर्व संक्षिप्त इतिहास के लेखक श्री शान्तिलालजी सुराणा 16-9-79 को इन्दौर से भोपावर के लिए रवाना हुए। करीब दो बजे ये लोग सरदारपुर पहुँचे ही थे कि यहां मूसलाधार वर्षाप्रारंभ हो गई थी जिससे माही नदी का पूल जलमय हो गया तथा पूल पर कमर तक पानी था एवं पानी का बहाव अत्यंत तीव्र था किन्तु उन्होने प्रभु का स्मरण करते हुए पूल सुरक्षित रूप से पार किया। - सन् 1983 के जनवरी माह में दो यात्री बस अहमदाबाद से भोपावर आई। यात्री लोगों ने बहुत थुम-धाम से भगवान शान्तिनाथजी की पूजा की, भक्ति के प्रभाव से दोपहर में प्रभु के मूल गर्भ-गृह में करीब दो घंटे तक प्रभु के मस्तक पर अमृत झरने लगा । गर्भ गृह में घुटने-घुटने तक जल भर गया 30 चमत्कार अनेक लोगों ने देखे।
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* एक निवेदन* भोपावर टीर्थ स्थल न केवल इस मालवांचल का अपितु इस भारत वर्ष का एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है, जहाँ पर भगवान शान्तिनाथजी की 12 फीट उँची काउसमाधारी विशाल एवं भव्य प्रतिमा है। इस तीर्थ स्थल पर विकास की धारा अविरल रूप से बह रही है। तीर्थ अत्यन्त प्राचीन होने के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुँच चुका था। अतः इसका जीर्णोद्धार अति आवश्यक था । इस - तीर्थ के विकास के लिए आपका आर्थिक सहयोग अपेक्षित है।
सभी सधर्मी बंधुओं से निवेदन है कि इस तीर्थ पर पथारकर अपना जीवन सफल बनाएँ तथा मुक्त हस्त से दान देकर अपने धन का सदुपयोग करें। अनेक भाग्यशाली वान दाताओं ने इस तीर्थ के विकास के लिए अपना तन-मन-धन अर्पित किया है। - आज भोपावर की गणना भारतवर्ष के बड़े तीर्थ स्थलों में की जाती है। किन्तु हमारा उत्तरदायित्व यहीं पूरा नहीं हो जाता है। इस तीर्थ के विकास के लिए भविष्य में अनेक योजनाएँ हैं, आपके सहयोग के बिना इन योजनाओं को मूर्त रूप देना संभव नहीं है। अतः यथा शक्ति अपने धन का सदुपयोग करके तीर्थ के विकास में भागीदार बनें।
यह तीर्थ यामीण अंचल में स्थित है अतः इस क्षेत्र में संसाधनो का अभाव होना स्वाभाविक है; इसके बावजूद इस मन्दिर के ट्रस्ट मण्डल ने तीर्थ की व्यवस्था पूर्णरुपेण समर्पित होकर संभाली. हैं किन्तु फिर भी कुछ त्रुटि रह जाना स्वाभाविक है। यदि आपको कहीं कोई त्रुटि या अव्यस्था लगे तो आप उदारता पूर्वक हमें क्षमा करें। यह तीर्थ सभी जैन भाईयों का है व्यवस्थापक या ट्रस्टीगण तो संघ एवं तीर्थ के सेवक मात्र हैं। मुनिराज भगवंतो से भी इस तीर्थ पर पधारने के लिए आत्मीय निवेदन है क्योंकि उनकी वाणी में वह आलौकीक एवं दिव्य शक्ति है जिससे तीर्थका यशोगान सम्पूर्ण विश्व में हो सकता है। यह तीर्थ और अधिक समृद्ध हो एवं यहाँ उत्तरोतर विकास हो, इस हेतु आपके सुझाव सादर आमंत्रित है।
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* सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची
1. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
2. तीर्थंकर चरित्र भाग - 1
3. श्री शुक - सुधा - सागर (महाभारत का हिन्दी रूपांतरण)
4. संक्षिप्त शिवपुराण
5. पूर्व लिखित भोपावर का संक्षिप्त इतिहास
6. श्रीमद् भागवत गीता
7. रामचरित मानस
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8. शंकराचार्य
9. संस्कृति के चार अध्याय
10. प्रशम प्रश्न परिमल
11. तीर्थ दर्शन
- डॉ हीरालाल जैन
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- सं. हनुमानप्रसाद पोद्वार
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रतनलाल डोसी
- वेदव्यास
- श्री श्रीमद् ए. सी. स्वामी प्रभुपाद
शान्तिलाल सुराणा
ने
- गोस्वामी तुलसीदास
बुक ट्रस्ट इण्डिया
- रामधारी सिंह दिनकर
- मुनि वैराग्य रत्न सागर 'विभोर”
पन्नालाल वैद
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श्री भोपावर तीर्थ के सम्पूर्ण जीर्णोद्धार में लाभ लेने हेतु आप से निम्न स्थानों पर सहयोग राशी जमा करवाकर पुण्यार्जन करें।।
ट्रस्ट आयकर अधि. थार 12-ए के अन्तर्गत प्रवत्तदान आयकर विधान की धारा 80-जी के अनुसार आयकर से मुक्त है।
स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा राजगढ़
राजगढ़ जि.धार (म.प्र.) शाखा कोड नं. 3046, खाता नं. 50105 स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा बैंगलोर .
48 जर्नलिस्ट कॉलोनी दूसरा माला, जे.सी. रोड़,बेंगलोर शाखा कोड नं. 3222 खाता नं. 50167 स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा सुरत सूर्य सृष्टी, सब जेल के पास ..
चार रास्ता रिंगरोड़, सुरत शाखा कोड नं. 3275 खाता नं. 01000050483
स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा अहमदाबाद आश्रम रोड़, रानी हाई कोर्ट के पास
अहमदाबाद (गुजरात) - - शाखा कोड नं. 3217 खाता नं. 01000050305 स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा कोलकाता
कॉटन स्ट्रीट 161, सी.आर. एवेन्यू, कोलकाता
शाखा कोड नं. 3266 खाता नं. . स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा भुलेश्वर, मुंबई
बिल्डींग नं. 2 बी, जयहिन्द स्टेट
डॉ.ए.एम रोड़, भुलेश्वर मुंबई-2 - शाखा कोड नं. 3001 खाता नं. 50541
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स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा - चेन्नई
ओरिएण्टल हाउस -
115 ब्राडवेज, चेन्नई .. शाखा कोड नं. 3220 खाता नं. 50551
स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर
शाखा - इन्दौर ___37, सीतलामाता बाजार
गोराकुण्ड, इन्दौर (म.प्र.) शाखा कोड नं. 3020 खाता नं. 01000051431 स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर शाखा - नई दिल्ली एम.94 सुपर बाजार के सामने
नई दिल्ली शाखा कोड नं. 3203 खाता नं. बैंक ऑफ इण्डिया शाखा - रिंगनोद
रिंगानोद (धार) म.प्र. शाखा कोड नं. 3813
बैंक ऑफ महाराष्ट्र शाखा - राजगढ़
राजगढ़ (धार) म.प्र. ... शाखा कोड नं. 1053-03
आपके द्वारा उपरोक्त किसी भी शाखा में श्री शान्तिनाथ जैन रवे.मन्दिर ट्रस्ट, भोपावर के नाम से जमा करवाई गई सहयोग राशि बैंक द्वारा भोपावरतीर्थकोट्रांसफर होजावेगी । कृपया सहयोठा राशि जमा करवाकर भोपावर महातीर्थको सूचना अवश्य भेजें ताकि आपको रसीव भेजी जा सके।
कृपया सहयोग राशी किसी भी व्यक्ति को नगवन देवें। सहयोग | राशि किसी बैंक में ही जमा करावे या ड्राफ्ट द्वारा ही भेजें।
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श्री मांडव तीर्थ
35 fant.
धार
2 किमी.
श्री अमीझरा तीर्थ /
श्री अभ्युदय धाम तीर्थ
21 fentit.
श्री भोपावर तीर्थ शान्तिनाथ धाम
5 किमी.
मांगोद
6 किमी.
6 किमी.
8 किमी.
फुलगांवड़ी 17 किमी..
इन्दौर-अहमदाबाद रोड़
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
5 किमी.
सरदारपुर राजगढ़
2 किमी.
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उपाश्रय
সীতীনালা
DORE
धर्मशाला
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________________ 10330) कंचन, राजगढ़, 235409-10