Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 30
________________ इस समय श्रावक सेठ गट्टुलाल पूनमचन्दजी को छोड़कर सभी व्यवसायी आजीविका हेतु बाहर चले गए थे । वे इस तीर्थ की व्यवस्था देखते थे । आँख की बिमारी के पश्चात् सेठ गट्टू लालजी एवं डुंगाजी हुक्मीचन्दजी के हरकचन्द सेठ ने बागमलजी को इस तीर्थ की व्यवस्था संवत् 1970 आसोज विदि 9 को सौंपी। सेठ बागमलजी ने मन्दिर की व्यवस्था 1 रूपये 7 पैसे की सिल्लक लेकर संभाली। जिस समय उन्होनें मन्दिर की व्यवस्था संभाली, उस समय मूलनायक के भोयरे के अतिरिक्त बाहर का हिस्सा वीरान था । बागमलजी ने 82 वर्ष की उम्र में बिमारी के कारण तीर्थ की व्यवस्था अपने पुत्र 'मगनलालजी व रतनलालजी को सौंप दी । संवत 1978 शुभमिति फाल्गुन वदी 5 को प्रातः स्मरणीय गणधर भगवन्त श्री सुधर्मा स्वामीजी की पुण्यवंती पाठ परंपरा में आए हुए 1008 श्री जैन आचार्य श्रीमद् सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज परमपूज्य पन्यास मोतीविजयजी महाराज तथा आदि ठाणा 26 सहित भोपावर पधारे और श्री शान्तिनाथ भगवान के दर्शन कर अपूर्व आनंदित हुए। अधिष्ठायक देव का स्वप्न भी महाराज साहेब को प्राप्त हुआ, जिसमें तीर्थ की प्राचीनता बाईसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथजी के समय की ज्ञात हुई। महाराज साहेब ने चौमासा एवं विहार के समय सारे देश में इस पावन तीर्थ की महिमा लोगों को बताई और इस तीर्थ की यात्रा के लिए उन्हे प्रेरित किया । समग्र भारत वर्ष से तीर्थ यात्री भोपावर आने लगे। तीर्थ पर आमदनी शुरू हुई और मन्दिर के जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया गया । तीर्थ स्थल पर एक पेढ़ी कायम की गई जिसका नाम श्री शान्तिनाथ. जैन श्वेताम्बर मन्दिर ट्रस्ट (पेढ़ी) रखा गया । सुरत निवासी सेठ चुनीभाई मन्छूभाई की धर्मपत्नी सेठानी कंकूबाई की तरफ से राजगढ़ में ठहरने के लिए धर्मशाला बनाई गई। श्री संघ के निवेदन पर तात्कालीन रियासती शासक जिवाजी राव शिंदे ने यात्रियों के लिए सरदारपुर से भोपावर तक पक्की सड़क बनवा दी। माही नदी पर सरदारपुर नगरपालिका ने एक पुल का निमार्ण करवाया जिससे भोपावर का आवागमन सुगम हो गया; एवं मन्दिर की प्रसिद्धि बढ़ने लगी । मन्दिर का शिखर, वर्तमान काँच का नया मण्डप एवं आगे 18

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