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अत्यंत आवश्यक था। जैसा कि मैनें पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि इतिहास रेखा-प्रस्तर नहीं होता, इसके अनेक प्रमाण हे यथा खंबात का चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिरजोई.सन्1108 में बनवाया गया था, और सन् 1295 में इसका जीर्णोद्धार करवाया गया था। वहां के लेखों से पता चलता है कि वह समय-समय पर मालवा, सपवलक्ष तथा चित्रकूट के अनेक धर्मानुयायियों के विपुल दान के द्वारा समृद्ध बनाया गया था । हमारा प्रयास भी इसी दिशा में है। भगवान श्री शान्तिनाथजी की प्रतिमा भव्य एवं शोभावान दिखे इसलिए भव्यातिभव्य जिन मन्दिर के नवनिर्माण का निश्चय किया गया ।
पूर्ण रूप से नवनिर्मित होने वाले जिन मन्दिर के तीर्थोद्धार की जानकारी श्री जिन शासन के लगभगा समस्त गीतार्थ पूज्य आचार्य भगवंटो को देने पर सभी कृपावंतो ने वासक्षेप भेजकर इस पुनीत कार्य के लिए अपना शुभाशीष प्रदान किया। अनेक प्रतिष्ठित एवं अनुभवी जिन मन्दिर निर्माण करने वाले सोमपुराओं से मन्दिर के लिए विविध नक्शे तथा खर्च आदि की जानकारी निकाली ठाई अंततः एक अद्भुत, विशिष्ट नक्काशी वाले तथा उच्च शिखर वाले मन्दिर के नक्शे/मॉडल को अन्तिम रूप दे दिया गया। इस जिनालय के निर्माण का कुल खर्च लगभग 15 करोड़ रुपये आँका गया है।
जीर्णोद्धार के कार्य में परम पूज्य आचार्यदेव श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज पहधर, समुदाय के गौरव मालव देशोद्धारक परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज के सुशिष्य रटन मालव भूषण, वर्द्धमान तपोनिष्ठ परम पूज्य आचार्य देवेश श्री नवरत्नसागरसूरीश्वरजी महाराज का मंगलमय आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से संभव हो रहा है। ___ 12 दिसंबर 2002 के शुभ दिन जिनालय के भूमिपूजन द्वारा तीर्थोद्धार के कार्य का शुभांरभ हुआ | पूना निवासी परम गुरुभक्त शाह हंसराजजी धर्माजी कटारिया परिवार ने उदारता पूर्वक बोली
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