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किसी आदेश एवं अनुमति से भोपावर छोड़कर अमझेरा चले आए।
3 जुलाई 1857 को अमझेरा के दीवान गुलाबराय सशस्त्र सिपाहियों के साथ भोपावर ऐजेन्सी आए। उनके साथ संदला के ठाकुर भवानीसिंह भी थे । भवानीसिंह के पास 2 बंदूकें थी । उन्होने ऐजेन्सी के कर्मचारियों को बंदी बना लिया और समस्त शासकीय वस्तावेज समाप्त कर दिए। इसी समय अमझेरा के सैनिकों ने रोष में आकर ब्रिटीश झंडा फाड़ डाला और उसे एजेन्सी से हटा दिया । केप्टन एचिसन और उसके दल का भोपावर से 27 कि.मी. आंदोलनकारियों ने पीछा किया। आंदोलनकारियों के दल का नेतृत्व अमझेरा के श्री मोहनलालजी ने किया था । -
अमझेरा के सिपाहियों ने भोपावर का पोस्ट ऑफिस, चिकित्सालय एवं एजेंसी हाउस नष्ट कर दिया। सिपाहियों के सहयोग के लिए कुछ स्थानीय नागरिक भी साथ हो गए। ये लोग तोड़फोड़ कर पास के जंगलों में भाग जाते थे । इस प्रकार भोपावर
अमझेरा के सिपाहियों ने विद्रोह का शंख फूंक दिया। अमझेरा के सिपाहियों का विद्रोह भोपावर एजेंसी के लिए एक चुनौती हो गई थी । सन् 1857 के आंदोलन सम्बन्धी दस्तावेज (जो की राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली में है) के अध्ययन से यह विदित होता है कि 1857 के विद्रोह में अंग्रेज अधिकारियों को अपने परिवार सहित भोपावर से भागना पड़ा था ।
होल्करों की नीति अमझेरा के प्रकरण में कूटनीति पूर्ण रही । अंग्रेज़ महाराणा बख्तावरसिंह से भयभीत हो चुके थे और वे समझ चुके थे कि उन्हें सरलता से पकड़पाना संभव नहीं है। अतः उन्होने महाराणा बख्तावरसिंह को 13 नवम्बर 1857 को छल पूर्वक बन्दी बनाया, उन पर महज दिखावे के लिए मुकदमा चलाया गया एवं 10 फरवरी 1858 को उन्हें इन्दौर के एम. टी. एच. ग्राउन्ड पर फाँसी वे दी गई | महाराणा बख्तावरसिंह व उनके साथियों ने हँसते हँसते इस देश की सेवा में अपना प्राणों की आहुति दे दी। उनके इस बलिदान को शत्-शत् नमन् ।
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