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का रंग मण्डप नये बनवाये गये । सेठ आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी गोड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर से भी सहायता गुरुमहाराज सा. की प्रेरणा से प्राप्त हुई । मन्दिर में काँच की सुन्दर कारीगरी का कार्य कुशल कारीगरों से करवाया गया । खम्भों एवं दीवारों पर कथानक चरित्र तथा शिलालेख काँच में अंकित करवाये गये । जिससे मन्दिर के सौन्दर्य में चार चाँद लग गये ।
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वर्तमान मन्दिर दो मन्जिला है। नीचे की मन्जिल पर नए सभा मण्डप में द्वार के एक और सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज एवं भेरूजी की प्रतिमा है तथा दूसरी और मणिभद्रजी, जम्बुस्वामीजी गौतमस्वामीजी, आत्मारामजी महाराज साहेब की प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त मानभद्रजी एवं क्षेत्रपालजी की मूर्तियाँ भी है । मन्दिर में प्रवेश करते ही दो विशाल हाथी बने हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे आपके स्वागत के लिए तत्पर हों । द्वार पर ही रावणमन्दोदरी के सुन्दर चित्र बनें हुए हैं। द्वार के ठीक ऊपर अष्टापदजी तीर्थ का सुन्दर चित्र बना हुआ है। ठीक सामने मूलनायक भगवान श्री शान्तिनाथजी की भव्य प्रतिमा है। उनके चरणों के पास इन्द्रइन्द्राणी की मूर्ति है। उपर मस्तक के पास शान्तिनाथजी एवं चन्दाप्रभुजी की श्वेतवर्णी प्रतिमा है। मूलनायक की प्रतिमा के दोनो ओर स्वस्तिक बने हुए हैं। उनके आभा मण्डल के पीछे एक चक्र बना हुआ हैं तथा प्रभु की प्रतिमा के ठीक उपर रजत छत्र लगा हुआ है । बाहर भगवान नेमिनाथजी एवं ऋषभदेवजी की प्रतिमा है । मूलनायक का लेप करवाकर पुनः प्रतिष्ठा प्रातः स्मरणीय गणधर भगवन्त श्री सुधर्मा स्वामीजी की पुण्यवंती पाट परंपरा में आए हुए 1008 पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्रीमद् सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज साहेब के वरद हस्त से संवत 1983 में हुई । अतीत में उन्होने जीर्णोद्धार का जो कार्य किया, उसे यह मालव माटी कभी भी विस्मृत नहीं कर पाएगी। मन्दिर में श्री वल्लभसूरीजी म. सा. की प्रतिमा भी है, नीचे के नूतन सभा मण्डप में शत्रुंजय तीर्थ का विशाल मॉडल, काँच का आगम मन्दिर, गुरु मन्दिर, हीरसूरिजी महाराज द्वारा अकबर बादशाह को प्रतिबोध, आगरा निवासी चम्पाबहन की 6 माह की उपवास की तपश्चर्या तथा शान्तिचंद आचार्य को बादशाह
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