Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 27
________________ इस तीर्थ की विशाल 12 फुट की काउस्सगधारी प्रतिमा स्वयं इस बात की प्रतीक है कि यह तीर्थ अति प्राचीन है । क्योंकि ऐसी दिव्य एवं विशाल प्रतिमा जो दो पाँव पर आधारित है, उसका निर्माण होना संभव नहीं है; ऐसा शिल्पशास्त्रियों का ही कथन है । मूल गर्भ गृह का अष्ट पहलू गुम्बज भी प्राचीनता का द्योतक है, जो आज भी यथावत विद्यमान है । मथुरा की कंकालीटीका के पास दूसरी शताब्दी में बने जैन स्तूप जिसे देव निर्मित स्तूप भी कहा जाता है, उसमें प्राप्त एक शिलालेख में उस समय देव स्थापित मूर्तियों के उल्लेख में कृष्णकाल के जमाने की मूर्तियों का जिक्र है । जिसमें इस विशाल मूर्ति का भी वर्णन है; क्योंकि मथुरा कृष्ण वासुदेव की लीला भूमि रही है। मथुरा से प्राप्त आयोग पट्टों में भी इस प्रकार की मूर्ति का दृश्य अकिंत है तथा वर्णन भी है । मूर्ति पर शिलालेख नहीं होना, मूर्ति के नीचे हिरण का चिन्ह होना, मस्तक पर घुघराले बाल जैसा शिल्प होना तथा मूर्ति काले प्राचीन पाषाण की कलात्मक होना, ये सभी इसके पाषाण युग के होने की कहानी कहते हैं। साथ ही प्राचीन जैन तीर्थों के सभी लक्षण जैसे शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि तीर्थों के है, वे सभी यहां पाए जाते हैं ; यथा - जैन भाइयों की बस्ती का अभाव, जंगली क्षेत्र आदिवासीबस्ती, आसपास जलाशय, चारों ओर प्राकृतिक एवं मनोहारी दृश्य विशिष्ट चमत्कार इत्यादि । पूर्व व्यवस्थापक स्व. सेठ बागमलजी के जमाने में एक व्यक्ति के शरीर में व्यंतर वेदना थी । वह भी यह बतलाया करता था कि यहाँ पर 40 मन्दिर थे तथा 200 वर्ष पूर्व यहाँ जैनियों की अच्छी बस्ती थी । ऐसी ही किंवदंतियाँ यहां के वृद्ध लोग भी बताते है । आज भी पुराने मकान, कई टूटी-फूटी मूर्तियों के अवशेष खुदाई करने पर खेतों से मिलते है । अमझेरा और भोपावर के बीच डाठोल गाँव में भी कई जैन मन्दिर भन स्थिति में पड़े है । अगर इनकी खुदाई की जाए तो कई मूर्तियाँ निकल सकती है। भोपावर के मन्दिर के जिर्णोद्धार के समय जब खुदाई की गई थी, तो कितनी 15

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