Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 26
________________ * तीर्थ एवं प्रतिमा की प्राचीनता * वर्तमान समय का भोपावर ग्राम अतीत का अट्यन्त सुंदर एवं वैभवशाली नगर था । इसका नाम भोजकट (भोजकुट) था। इस नगर की स्थापना श्री कृष्ण वासुदेव की पत्नी रुक्मिणी के भाईरुक्मी (रुक्मणकुमार) के द्वारा की गई। जिसका प्रमाण यह है कि यहाँ से 17 कि.मी. की दूरी पर कुण्डिनपुर (कुंदनपुर) जिसका वर्तमान नाम अमझेरा है, स्थित है।रुक्मी के पिता भीष्मक यहाँ के अधिपति थे । प्रमाण स्वरुप अमकाझी-झमकाजी में रथ के निशान आज भी मौजूद है। यहाँ एक कुण्ड व देवी का मन्दिर है। रुक्मणकुमार ने मन्दिर का निर्माण कर श्री शान्टिानाथ प्रभु की विशाल 12 फूट उँची काउस्सगधारी श्यामवर्णीय प्रतिमा जैन शास्त्रानुसार प्रतिष्ठित करवाई थी। सत्य-अहिंसा से प्रेरित होकर तथा श्री नेमिनाथजी जो यदुवंशी थे एवं जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे उनकी परंपरा का अनुसरण करते हुए रुक्मी ने श्री शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा की स्थापना की। यह प्रतिमा भगवान श्री नेमिनाथ के जमाने की हैं। कल्पसूत्र के अनुसार भगवान श्री पार्श्वनाथ और श्री नेमिनाथजी के समय का अंतर लगभग 84 हजार वर्ष बताया है एवं भगवान श्री पार्श्वनाथ एवं श्री महावीर स्वामी के समय का अंतर 250 वर्ष है। भगवान श्री महावीर का काल भी वर्तमान से 2600 वर्ष पूर्व का है। इस प्रकार यह तीर्थ लगभग 87000 वर्ष प्राचीन है। मूल गार्भ-गृह आज भी यथावत उसी युठा का है। पूज्य न्यायविजयजी द्वारा रचित जैन तीर्थों का इतिहास, प्राचीन ग्रंथों, टीर्थ माला स्त्रोत, प्राचीन टीर्थमाला संठाह तथा पूज्य श्री कनकविजयजी महाराज द्वारा रचित श्री जैन तीर्थ का इतिहास में भी इस बात की पुष्टि की है कि यह प्रतिमा भगवान नेमिनाथजी के समय की ही है। इससे यह स्पष्ट है कि यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन् है।

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