Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 24
________________ * भोपावर का प्रदुर्भाव महाराजा भीष्मक विदर्भदेश के अधिपति थे । उनके पांच पुत्र व एक सुन्दर पुत्री थी । सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी (रुक्मणकुमार) था, चार छोटे भाईयों के नाम क्रमशः रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मेश और रुक्ममाली थे। उनकी बहिन थी सती रुक्मिणी जो भगवती लक्ष्मीजी का अवतार थी। जब रूक्मिणी ने श्री कृष्ण के सौन्दर्य, पराक्रम, गुण और वैभव की प्रशंसा सुनी तो उसने श्रीकृष्ण को मन ही मन में अपना पति मान लिया था । श्रीकृष्ण भी यह जानते थे कि रुक्मिणी सौन्दर्य, शील, स्वभाव और गुणों में अद्वितीय है अतः वही उनके अनुरूप पटनी है । रुक्मिणी के भाई बन्धु भी चाहते थे कि हमारी बहिन का विवाह श्रीकृष्ण से हो, किन्तु रुक्मी यह नहीं चाहते थे और उन्होने उसका विवाह शिशुपाल से तय कर दिया । वे शिशुपाल को ही अपनी बहिन के योग्य वर समझते थे । परमसुंदरी रुक्मिणी को यह बात पता चलने पर, एक विश्वास पात्र ब्राह्मण को तुरंत संदेश देकर श्रीकृष्ण के पास भेजा एवं अपनी आंतरिक इच्छा से उन्हे अवगत करवाया । इधर कुड्डिलपुर (कुन्दनपुर) महाराजा भीष्मक अपने बड़े पुत्र रुक्मी के स्नेहवश अपनी कन्या शिशुपाल को देने के लिए विवाहोत्सव की तैयारी करा रहे थे । रुक्मिणीजी अन्तःपुर से निकलकर देवीजी के मन्दिर के लिए चली। बहुत से सैनिक उनकी रक्षा में नियुक्त थे । वे स्वयं मौन थीं और माताएं तथा सखी सहेलियां सब ओर से उन्हे घेरे हुए थी। शूर-वीर राजसैनिक हाथों में अस्त्र-शस्त्र उठाए कवच पहने उनकी रक्षा कर रहे थे । उन्होने माँ अम्बिका का पूजन-अर्चन किया और अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए आशीर्वाद मांगा। रुक्मिणी जिस प्रकार उत्सव यात्रा के बहाने मंद-मंद गति से चलकर भगवान श्रीकृष्ण पर अपना सौन्दर्य न्योछावर कर रही थी। उनके सौन्दर्य 12

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