Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 19
________________ हुआ । महारानी ने चौदह स्वप्न देखे । महारानी ने स्वपनों की बात है महाराजा से कही। स्वप्न सुनकर महाराज बहुत प्रसन्न हुए उन्होने कहा, महादेवी आपकी कुक्षि (कोख) में कोई लोकोत्तम महापुरुष आया है। महारानी अचिरादेवी की कुक्षि (कोख) से उत्पन्न बालक कोई सामान्य बालक नहीं था, उसकी नियति तो चक्रवर्ती सम्राट एवं तीर्थकर पद को सुशोभित करने वाली थी। कहा जाता है कि - होनहार बिरवान के, होत है चिकने पात । महारानी अचिरादेवी की कुक्षि में आए गर्भस्थ उत्तम जीव के प्रभाव से उस समय कुरुक्षेत्र में फैल रही महामारी शांत हो गयी तथा सर्वत्र शांति व्याप्त होने लगी । यही कारण था कि ज्येष्ठ मास के क्रष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भरणी नक्षत्र में जब सभी ग्रह उच्च स्थान पर थे महारानी अचिरादेवी ने जिस पुत्र रटन को जन्म दिया उसका नाम शान्तिनाथ रखा गया। __इस अद्भुत बालक के जन्मोत्सव मनाने 56 विककुमारी एवं 64 इन्द्र आये एवं मेरूगीरी पर्वत पर परमाटमा का अभीषेक द्वारा जन्म कल्याणक महोटसव मनाया तथा महाराजा विश्वसेनजी द्वारा अपने नठार में जन्मोटसव मनाया गया। . यौवनवय प्राप्त होने पर राजकुमार शान्तिनाथ का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया, महाराजा विश्वसेनजी ने राज्य का भार पुत्र को दे दिया और अपना आत्महित साधने लगे। श्री शान्तिनाथजी यथाविधि राज्य का संचालन करने लठो और निकाचित् कर्मो के उदय से रानियों के साथ भोठा भोगने लगे । सभी रानियों में अग्र स्थान पर महारानी यशोमती थी । महारानी यशोमती ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया जिसका नाम चक्रायुध रखा गया। न्याय एवं नीतिपूर्वक राज्य का संचालन करते हुए महाराजा । शान्तिनाथजी को 25 हजार वर्ष व्यटीत होने पर अस्त्र शाला में चक्ररटन का प्रादुर्भाव हुआ | महाराजा ने चक्ररत्न का अलाई। (7)

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