Book Title: Bhopavar Tirth ka Sankshipta Itihas
Author(s): Yashwant Chauhan
Publisher: Shantinath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 21
________________ रूपी चपल एवं दुर्दान्त अश्व, प्राणी को बल पूर्वक खींचकर नरक की ओर ले जाता है । इन्द्रियों के वशीभूत होकर ही मनुष्य अभक्ष्य भक्षण, अपेय पान और अगम्य के साथ गमन करता है । इन्द्रियों के वशीभूत हुए जीव अपने उत्तम कुल और सदाचार से भ्रष्ट होकर राग एवं मोह का दासत्व करते हैं। समझदार लोग उन्हें देखकर हँसते है जो दूसरों को विनय, सदाचार, धर्म और संयम का उपदेश देते हैं किन्तु स्वयं इन्द्रियों से पराजित हो चुके हैं। एक वीतराग भगवंत के बिना इन्द्र से लेकर एक कीड़े तक सभी प्राणी इन्द्रियों से हारे हुए हैं। स्वर्ण-शिखा जैसी दीप ज्वाला के दर्शन से मोहित होकर पतंगा दीपक पर झपटकर मरता है, मनोहर गायन सुनने में लुब्ध हुआ हिरण शिकारी के बाण से घायल होकर जीवन से हाथ धो बैठता है, इसलिए समस्त दुःखों से मुक्त होने के लिए इन्द्रियों का दमन करना चाहिए। बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि इन्द्रियों के विषय में राग- -द्वेष का त्याग करे । केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान 24999 वर्षों तक विचरते रहे । निर्वाण का समय निकट आने पर प्रभु सम्मेतशिखर पर्वत पर पधारे और 900 मुनियों के साथ अनशन किया एक मास के अंत में ज्येष्ठ - कृष्णा 13 (तेरस) को भरणी नक्षत्र में उन मुनियों के साथ भगवान मोक्ष पधारे। भगवान का कुल आयुष्य एक लाख वर्ष का था । समवायांग सूत्र के अनुसार भगवान शान्तिनाथजी के चक्रायुध आदि 90 गणधर हुए । 9

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