Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 22
________________ धर्म और राजनीति धर्म और राजनीति : मूल सूत्र धर्म का मूल सिद्धान्त है – स्वतंत्रता और राजनीति का मूल सूत्र है- दण्ड का शासन। किन्तु धर्मविहीन कोई भी राजनीति अच्छी नहीं हो सकती। हमें धर्म और राजनीति में सापेक्ष संबंध स्वीकार करना होगा। राजनीति में स्वतंत्रता के सिद्धान्तों की जो स्थापना हुई है, उनका जो विकास हआ है, उसमें धर्म की महत्त्वपर्ण भमिका रही है। वर्तमान स्थिति यह है-जो राज्य अपने नागरिकों को स्वतंत्रता नहीं देता, वह एक अलग खेमे में माना जाता है, पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाता है। हम अधिनायकवादी युग को देखें। वह कितना विचित्र युग था। उस शासन में इतनी क्रूरता थी कि लाखों आदमियों को भून डालना एक सामान्य बात थी। उस युग की कल्पना मात्र से रोमाञ्च हो जाता है। आज अधिनायकवाद में जकड़े देशों की स्थितियां बदल रही हैं। उस लोहावरण से छनकर जो आ रहा है, वह सबको आश्चर्य में डाल रहा है। जनता ने यह अनुभव कर लिया है-स्वतंत्रता के बिना जो जीवन जिया, कर शासकों के जो अत्याचार महे, वे जीवन के काले दिन थे। आज वे ग्लासनोस्त और पेरोस्रोइका की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। राजनीति पर प्रभाव यह एक तथ्य है-धर्म का राजनीति पर प्रभाव रहता है। धर्म के मूल सिद्धान्तों को छोड़कर जो राजनीति चलेगी, वह ज्यादा टिक नहीं पाएगी। जैसे मोक्ष के लिए धर्म एक परम सिद्धान्त है वैसे ही समाज-व्यवस्था के लिए राजनीति एक परम सिद्धान्त है। बहुत सारे लोग राजनीति को बदनाम करते हैं। अनेक व्यक्ति आलोचना की भाषा में कहते हैं-आजकल सब जगह राजनीति चलती है। राजनीति का चलना कोई बुरी बात नहीं है। जीवन के लिए भोजन जितना अनिवार्य है, समाज-व्यवस्था के लिए राजनीति उतनी ही अनिवार्य है। गजनीति द्वारा संचालित राज्य अच्छा होता है, राजनीति अच्छी होती है, तब भोजन, पानी, मकान आदि प्राथमिक व्यवस्थाएं उपलब्ध होती हैं। यदि राजनीति अच्छी नहीं है, राजनीति का दर्शन अच्छा नहीं है तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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