Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 155
________________ १३८ - हमारे यहां सबके सब दर्जी हैं, सबके सब नाई हैं, सबके सब धोबी हैं। जो श्रम की प्रतिष्ठा आचार्य भिक्षु ने की, उसके संदर्भ में कहा जा सकता हैश्रम को मूल्य देने के बारे में जो रस्किन ने सोचा, टालस्टाय ने सोचा, गांधी जी ने सोचा, उसे आचार्य भिक्षु ने पहले ही क्रियान्वित कर दिया था। स्नेह और सौहार्द भाव भेद में छिपा अभेद तेरापंथ के निकट रहने वाले लोग धर्म सीखने के साथ-साथ संगठन और व्यवहार को सीखते तो समाज का भी बड़ा कल्याण होता । श्रम करना अलग बात है और उसे प्रतिष्ठा देना, महत्त्व देना अलग बात है। आचार्य भिक्षु ने उसे मूल्य दिया था। आचार्य भिक्षु ने कहा- जब तक यह परस्पर स्नेह और सौहार्द की भावना रहेगी तब तक साधु-संस्था तेजस्वी बनी रहेगी। यह सचाई रस्किन के विचारों में भी उपलब्ध होती है । वस्तुतः अध्यात्म के धरातल पर कोई द्वैत नहीं हो सकता। इसे हम आचार्य भिक्षु और रस्किन - इन दो महान् पुरुषों के विचारों में उपलब्ध साम्य से जान सकते हैं। हम इनकी अनुभूतियों का अध्ययन करें, हमारा दृष्टिकोण बहुत साफ और प्रशस्त होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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