Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 157
________________ १४० भेद में छिपा अभेद सत्य है - जो लोग व्यापक दृष्टि से देखने वाले होते हैं, वे समाज के दुःखों को कम करने का प्रयत्न करते हैं। इसी श्रृंखला में मार्क्स का नाम लिया जा सकता है। मार्क्स एक ऐसे दार्शनिक और अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने समाज के निम्न वर्ग के लोगों की पीड़ा का अनुभव किया। उनके दुःख को देख मार्क्स द्रवित हो उठे। मार्क्स ने इसी चिन्तन में अपना सारा जीवन खपा दिया-जो निम्न वर्ग के लोग हैं, मजदूर हैं, शोषित हैं, जिनका शोषण किया जा रहा है, उनका दुःख कैसे समाप्त हो? मिल मालिक और मजदूर का जो वर्ग-संघर्ष चल रहा है, उसमें मजदूर कैसे आगे आएं? कैसे शक्तिशाली बनें? इस दिशा में उन्होंने गंभीर चिन्तन-मंथन किया। अनेक कठिनाइयों को सहन किया। रोटी की समस्या से जूझे। गरीबी के कारण उनका लड़का चल बसा। न जाने कितने कष्ट आए लेकिन मार्क्स इसी चिन्तन की क्रियान्विति में लगे रहे। क्या वह आदमी होता है? मैं अनेक बार सोचता हूं, जो व्यक्ति गरीबों के प्रति संवेदनशील नहीं होता, असमर्थ लोगों के प्रति संवेदनशील नहीं होता, क्या वह आदमी होता है? कछ लोग ऐसे होते हैं, जो बहत समर्थ होते हैं। वे अपने आस-पास दस-बीस या पचास-सौ लोगों का घेरा बना लेते हैं। उससे आगे की बात वे सोच नहीं पाते। छोटे तबके के लोगों पर उनका ध्यान ही नहीं जाता। जो शारीरिक, मानसिक या आर्थिक दृष्टि से असमर्थ हैं, उनके प्रति जिसके मन में कोई संवेदना नहीं जागती, उसमें मानवीय करूणा का स्रोत सूख जाता है। कार्ल मार्क्स शोषित वर्ग के प्रति संवेदनशील थे। मार्क्स ने उनके दःख को कम करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने शोषित वर्ग के उत्थान के लिए जो विचार और दर्शन प्रस्तुत किया, उसके आधार पर एक नए दर्शन-साम्यवाद का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी का व्यक्तित्व जयाचार्य और मार्क्स-दोनों ने उन्नीसवीं शताब्दी को अपने चिंतन-मंथन से प्रभावित किया। जयाचार्य का जन्म ईस्वी सन् १८०३ में हआ और मार्क्स का जन्म इस्वी १८१८ में। केवल पन्द्रह वर्ष का अन्तर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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