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ध्यान की विभिन्न धाराएं
१०१.
दिगम्बर संप्रदाय है। इसके मानने वाले ठाकुर कहलाते हैं। यह नग्न खड्गासनी मूर्तियां पूजते हैं। इनकी मान्यताएं जैनियों से मेल खाती हैं। ईश्वर के कर्तृत्व पर इनकी आस्था नहीं है और ये विशुद्ध शाकाहारी हैं।।
'चांदनाथ संभवतः वह प्रथम सिद्ध थे, जिन्होंने गोरक्ष मार्ग को स्वीकार किया था। इसी शाखा के नीमनाथी और पारसनाथी नेमिनाथ और पार्श्वनाथ नामक जैन तीर्थंकरों के अनुयायी जान पड़ते हैं। जैन साधना में योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नेमिनाथ और पार्श्वनाथ निश्चय ही गोरक्षनाथ के पूर्ववर्ती थे। 2' जैन साधना पद्धति में आसन
जैन साधना पद्धति में यम-नियम प्रारंभ से ही मान्य हैं। आसन भी मान्य रहे हैं। बौद्ध साधना पद्धति में आसनों के लिए कोई स्थान नहीं है, किन्तु जैन साधना पद्धति में उन्हें बहुत मूल्य दिया गया है। भगवान् महावीर स्वयं अनेक आसनों का प्रयोग करते थे। उन्हें केवलज्ञान आसन की विशेष मुद्रा में उपलब्ध हुआ था। स्थानांग सूत्र में निषद्या के अनेक प्रकार बतलाए गए हैं।
१. उत्कटुका - पुतो को भूमि से छुआए बिना पैरों के बल पर बैठना। २. गोदोहिका - गाय की तरह बैठना या गाय दुहने की मुद्रा में
बैठना। ३. समपादपुता – दोनों पैरों और पतों को छुआ कर बैठना। ४. पर्यंका – पद्मासन। ५. अधपर्यंका – अर्ध पद्मासन। जैन आचार्यों ने कुछ शर्तों के साथ प्राणायाम को भी मान्य किया है। साधना की परंपराएं
ध्यान की तीन परंपराएं मिलती हैं। प्राचीनतम ध्यान पद्धति का नाम है
1. तीर्थंकर, नवम्बर १९७१, पृष्ठ ४-६॥ 2. नाथ संप्रदाय (हजारी प्रसाद द्विवेदी)पृ. १९० 3. आयारचूला १५/३८ 4. ठाणं ५/५० 5. महावीर की साधना का रहस्य (यवाचार्य महाप्रज्ञ) पृ. २७०-२७५
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