Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 149
________________ १३२ भेद में छिपा अभेद यदि वीतराग आदर्श नहीं होता तो कैसी स्थिति होती? चारों ओर अंधकार ही अंधकार होता, कहीं प्रकाश दिखाई ही नहीं देता। आदर्श है वीतराग और उसे पाने का साधन है संयम। कोई व्यक्ति संयम के बिना वीतरागता की दिशा में प्रस्थान नहीं कर सकता। यदि हमारे सामने आदर्श स्पष्ट नहीं है तो हमारी दिशा ही गलत हो जाएगी। गति से पूर्व दिशा का निर्धारण जरूरी होता है। दिशाहीनता से भटकाव की स्थिति निर्मित होती है। यह असंयम का जो भटकाव है, वह दिशाहीनता का परिणाम है। दिशाहीनता को मिटाने का कार्य करते हैं संयम के प्रवक्ता। इसलिए उन्हें विश्व स्थिति का नियामक कहा जा सकता है आदर्शो वीतरागोस्ति, संयमस्तस्य साधनम्।। संयमस्यप्रवक्तारः, संति विश्वनियामकाः।। टालस्टाय का कथन आचार्य भिक्षु का लक्ष्य था मोक्ष की उपलब्धि। संयम और मोक्ष- इन दो शब्दों के बिना आचार्य भिक्षु को समझा ही नहीं जा सकता। टालस्टाय से पूछा गया- यदि सब लोग ब्रह्मचर्य का पालन करने लगें तो मनुष्य जाति के नष्ट होने का खतरा पैदा नहीं हो जाएगा? टालस्टाय ने उत्तर दिया- भाई! तम चिन्ता क्यों करते हो? धार्मिक लोग मानते हैं- मोक्ष जाना है और वैज्ञानिक लोग मानते हैं- एक समय ऐसा आएगा कि सूर्य ठंडा हो जाएगा। दोनों ही दृष्टियों से मनुष्य जाति का समाप्त हो जाना अनिवार्य है। चिन्ता की कोई बात नहीं है। बहुत लोग संयम की बात पर तर्क का आवरण डालने का प्रयत्न करते हैं। टालस्टाय के इस उत्तर में संयम का महत्त्व स्पष्ट परिलक्षित है। आचार्य भिक्षु की संयम-निष्ठा . हम आचार्य भिक्षु की संयम-निष्ठा को देखें। उन्हें कितनी कसौटियों में से गुजरना पड़ा। पहले अपना संयम और इतना कठोर संयम कि देखने वाला प्रकम्पित हो जाए। एक धर्मक्रांति का समय चल रहा था। आचार्य भिक्षु ने वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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