Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ आचार्य भिक्षु और टॉलस्टॉय १३१ असंयम से ओजोन की छतरी को तोड़ दे और परा - बैंगनी किरणें बरसनी `शुरू हो जाए। अन्यथा प्रकृति अपने नियम से चलती है । निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है - विश्व की व्यवस्था का नियामक तत्व है - संयम । इसीलिए हम उन व्यक्तियों को आज भी याद करते हैं, जो संयम के प्रवक्ता हुए हैं। संयम के प्रवक्ता इस दुनिया के मान्य व्यक्ति हुए हैं। असंयम का जीवन जीने वाले, असंयम की बात करने वाले अनगिनत व्यक्ति हुए हैं, जिनका लोग नाम तक नहीं जानते हैं। जो जो संयम के प्रवक्ता हुए हैं, उन्हें मानव जाति सिर पर उठाए हुए है। वह उनकी चरण रज को पवित्र मानकर कर पूजती है। संयम के दो प्रवक्ता आज मैं संयम के दो प्रवक्ताओं की चर्चा करना चाहता हूं। एक हैंआचार्य भिक्षु और दूसरे हैं - महात्मा टालस्टाय । आचार्य भिक्षु राजस्थान में जन्मे और टालस्टाय रूस में। दोनों ही महान् विचारक और संयम के महान् प्रवक्ता थे। टालस्टाय गृहस्थ होते हुए भी संन्यासी थे । आचार्य भिक्षु जैन मुनि बने, मुनित्व का उन्नयन किया। उनके संयमजीवन की एक ही कसौटी थी और वह थी संयम । संयम के अलावा और कोई बात उनके सामने नहीं थी । विकास कैसे ? मनुष्य जाति को अपने विकास के लिए सबसे पहली आवश्यकता है आदर्श की । जिस समाज के सामने कोई आदर्श नहीं होता, वह कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता, विकास नहीं कर सकता। दूसरा तत्त्व है - आदर्श की प्राप्ति का साधन | उस आदर्श तक कैसे पहुंचा जा सकता है? यह जाने बिना विकास संभव नहीं बनता। तीसरा तत्त्व है - अपना पराक्रम और गति । साध्य, साधन और गति - इन तीनों का योग विकास के लिए जरूरी है। आदर्श है वीतराग जैन धर्म में आदर्श माना गया - वीतराग । इस राग-द्वेष जनितं दुनिया में अगर वीतराग जैसा तत्त्व नियामक न हो तो दुनिया की क्या स्थिति बन जाए ? सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन में वीतराग को मूल्य दिया गया है फिर भी तीव्र राग-द्वेष और तीव्र असंयम है, इतनी उद्दंडता, अपराध और आतंक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162