Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आचार्य भिक्षु और टॉलस्टॉया
यह विराट् विश्व और उसकी व्यवस्था कैसी चल रही है? यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। विश्व केवल हमारी पृथ्वी ही नहीं है। अनन्त आकाश अवस्थित में हैं, अनंत निहारिकाएं, सौरमंडल और पृथ्वियां। कैसे चल रहा है यह विश्व? यह प्रश्न हजारों वर्ष पहले ऋषियों के मन में उभरा था। आज हमारे मन में भी यह प्रश्न उठ सकता है। विश्व-व्यवस्था : मल-तत्त्व
विश्व की व्यवस्था का मूल तत्व है नियम या संयम। विश्व नियम से चलता है, संयम से चलता है। वे नियम मनुष्य के द्वारा बनाए हुए नहीं हैं। जो सार्वभौम नियम हैं, जागतिक नियम हैं, वे विश्व-व्यवस्था के नियामक हैं। दूसरी बात है- जगत् में संयम है, इसलिए विश्व चल रहा है। हम जिस पृथ्वी पर जी रहे हैं, उसकी बात करें। इस पृथ्वी में पानी का भाग कितना है,
और स्थूल भूभाग कितना है। स्थूल भूभाग बहुत छोटा है। जो है, वह भी प्रायः पानी से घिरा हुआ है। चारों ओर समुद्र ही समुद्र है। मध्य में एक छोटा सा टुकड़ा है स्थूल भूभाग का। यदि पानी थोड़ा सा और बढ़ जाए, समुद्र का जालन्तर चार-पांच मीटर बढ़ जाए तो पृथ्वी की क्या दशा होगी? लेकिन उनका जलस्तर बढ़ नहीं रहा है, संयमित है, इसीलिए उसका नाम समद्र है। संस्कृत में मुद्रा शब्द का अर्थ होता है मर्यादा। जो मयांदा सहित है, संयम से युक्त है, वह समुद्र है। समुद्र अपनी मर्यादा को नहीं तोड़ता। नदी के पास जाने में बतरा महसूस हो सकता है, पर समुद्र के पास में कोई खतरा नहीं होता। नदी का पूर कब आ जाए, इसका पता नहीं चलता। समुद्र का नियम निश्चित है। ज्वार और भाटे का नियम निश्चित है, जल की वृद्धि और हाम का नियम निश्चित है। नियामक तत्व है संयम
साग विश्व नियम से चल रहा है। यह अलग बात है कि व्यक्ति अपने
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