Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 135
________________ ११८ भेद में छिपा अभेद. एक साथ विचार से निर्विचार में कैसे चले जाएंगे? किसी व्यक्ति में यह शक्ति हो सकती है कि वह ध्यान में बैठे और विचार समाप्त हो जाए। सबके लिए यह संभव नहीं है। समाधान यही है- जब भी हमारे मन में बुरा विचार आए, हम अच्छे विकल्प की ओर अपना ध्यान मोड़ दें, कुछ ही देर में बुरा विकल्प समाप्त हो जाएगा। हम बुरे विकल्प को अच्छे विकल्प में बदल दें लेकिन यह ध्यान निरन्तर बना रहे- विकल्प से निर्विकल्प स्थिति तक पहुंचना है। जब तक देखने का अभ्यास नहीं होता, विचार-मुक्त स्थिति का निर्माण संभव नहीं बनता। देखना और सोचना- दो तत्त्व हैं। हम मनस्वी हैं। इसलिए सोचना जानते हैं पर देखना नहीं जानते। प्रेक्षाध्यान का मतलब है देखना। जब देखेंगे तब साक्षात्कार होगा। जब सोचेंगे तब बौद्धिक तर्क पैदा होंगे। जहां वस्तु के साथ सीधा सम्पर्क होता है, वहां देखना होता है। जितने झगड़े हैं, विचारों के झगड़े हैं। साक्षात्कार में कोई झगड़ा नहीं है। विवादों की मूल जड़ है सोचना-विचारना। प्रेक्षाध्यान : निर्विचार ध्यान इस सारे परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर जो निष्कर्ष आता है, वह यही है- मन के खेलों से परे चले जाना ही ध्यान है। जब हम आत्मा के सन्निकट चले जाते हैं, मन की भूमिका समाप्त हो जाती है। जब तक हम मन की भूमिका पर जिएंगे तब तक लाभ में खुशी और अलाभ में शोक उत्पन्न होता रहेगा। यह स्थिति तब समाप्त होती है जब हम मन से अमन की भमिका में चले जाते हैं। यह सचाई है- जितने प्रभाव होते हैं, सारे मन पर होते हैं। मद्गशैल पाषाण पर कोई प्रभाव नहीं होता। जो अप्रभावित अवस्था है, वह अमन की अवस्था है। इस अवस्था को उपलब्ध होने का श्री कृष्णमूर्ति ने जो दर्शन प्रस्तुत किया है, वह प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण है। समान लक्ष्य की ओर ले जाने वाली इन दोनों पद्धतियों का प्रायोगिक क्रम एक नहीं है। इतना अन्तर होते हुए भी लक्ष्य की अवधारणा में जो साम्य है, वह प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान के क्षेत्र में विशिष्ट एवं अलौकिक उपलब्धि के लिए उत्प्रेरित करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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