Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 136
________________ प्रेक्षाध्यान और भावातीत ध्यान मूल्य है उपयोगिता का __ हमारी दुनिया में जितने भी उपयोगी साधन हैं, उनकी संख्या में वृद्धि हुई है। यह नियम है-जो भी अच्छी चीज हुई, उसकी संख्या में वृद्धि होती चली गई। यह आज से नहीं. आदिकाल से चला आ रहा नियम है। अनाज भी कई प्रकार के बढ़े हैं, फल भी कई प्रकार के बढ़े हैं, कपड़े भी कई प्रकार के बनते जा रहे हैं। लक्ष्य एक है- भूख मिट जाए, सर्दी-गर्मी से बचाव हो जाए। लक्ष्य एक होने पर भी प्रकार अलग-अलग बन जाते हैं और उनके अलग-अलग निर्माता-संस्कर्ता हो जाते हैं। ध्यान भी बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। जिस दिन मनुष्य ने ध्यान करना सीखा, उसे कुछ मिला। उससे महसूस हुआ-ध्यान उपयोगी है, मूल्यवान् है। जब मूल्य होता है तो उसके साथ उसकी अर्थवता भी बढ़ जाती है। जब कभी ध्यान का प्रचलन हुआ तब उसकी एक ही शाखा रही होगी। धीरे-धीरे उसकी अनेक शाखाएं चल पड़ीं। आज सैकड़ों-सैकड़ों ध्यान की पद्धतियां चल रही हैं। भावातीत ध्यान ध्यान की एक शाखा है भावातीत ध्यान। संक्षेप में इसे टी.एम. कहा जाता है। इसके संस्कर्ता महर्षि महेश योगी हैं। वे अमेरिका आदि अनेक देशों में रहे हैं और इसका बहुत प्रचार किया है। प्रचार के साथ एक विशेष बात यह की-इस ध्यान पद्धति को वैज्ञानिक परीक्षण में लगा दिया। वैज्ञानिक परीक्षणों के परिणाम भी आए। काफी साहित्य भी लिखा गया। हम प्रेक्षाध्यान और भावातीत ध्यान - इन दोनों पद्धतियों को तुलनात्मक दृष्टि से देखें। भावातीत ध्यान का वैज्ञानिक साहित्य तो बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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