Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 126
________________ प्रेक्षा और विपश्यना १०९ भीतर रोकना, पांच सैकेंड में बाहर निकालना और पांच सैकेंड बाहर रोकना - इस प्रकार बार-बार श्वास की आवृत्ति करना लयबद्ध श्वास है। प्रेक्षाध्यान में समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का जो प्रयोग कराया जाता है, वह विपश्यना में नहीं है। समवृत्ति श्वास प्रेक्षा की पद्धति है-दाएं नथुने से श्वास लें, बाएं से निकालें, पुनः बाएं नथुने से श्वास लें, दाएं नथुने से निकालें। चित्त और श्वास-दोनों साथ-साथ चलें, निरन्तर श्वास का अनुभव करें। चन्द्रभेदी श्वास का प्रयोग, सूर्यभेदी श्वास का प्रयोग, उज्जाई श्वास का प्रयोग-ये सारे प्रयोग प्रेक्षाध्यान को विपश्यना से पृथक् कर देते हैं। प्रेक्षाध्यान में केवल श्वास प्रेक्षा के पचास प्रकार के प्रयोग विकसित हुए हैं, जो सम्मत हैं, ज्ञात और मान्य हैं। सन्दर्भ : आसन विपश्यना में आसन का निषेध है, क्योंकि बौद्ध साधना पद्धति में आसन सम्मत नहीं है। भगवान् महावीर ने आसनों को बहुत महत्त्व दिया। डॉ० नथमल टाटिया बौद्ध-दर्शन के अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान् माने जाते हैं। उन्होंने कहा – महाराज! प्रेक्षाध्यान में आसन का प्रयोग करवाया जाता है। यह हठयोग से लिया गया है। मैंने कहा - डाक्टर साहब! आसन हठयोग से नहीं लिए गए हैं। भगवान महावीर ने स्वयं अनेक आसनों के प्रयोग किए हैं। महावीर को केवलज्ञान भी एक विशिष्ट आसन में उपलब्ध हआ। स्थानांग सत्र में आसनों के अनेक प्रकार बतलाए गए हैं। तपस्या का एक प्रकार है, काय-क्लेश-आसन का प्रयोग। मैंने विस्तार से इस बात को बतलाया-जैनों में कहां-कहां आसन के संबंध में क्या कुछ लिखा गया है। इस विषय पर चली लम्बी चर्चा के बाद डाक्टर टाटिया ने स्वीकार किया-आसन का प्रयोग किसी से लिया हआ नहीं है, परम्परा से. सहज प्राप्त है। डाक्टर टाटिया ने कहा - बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन की साधना प्रक्रिया में यह महत्त्वपूर्ण अन्तर है। बौद्धों में आसन वर्जित रहे हैं और जैन दर्शन में मान्य। वस्तुतः आसन कोई शरीर परिकर्म नहीं है। आसन साधना की एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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