Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 127
________________ ११० भेद में छिपा अभेद पद्धति है। वृत्तियों पर नियन्त्रण कैसे किया जाए? कर्मों की निर्जरा कैसे की जाए? इसका एक उपाय है आसन। इसके साथ-साथ आसन से स्वास्थ्य भी सुदृढ़ होता है। जो व्यक्ति ध्यान करता है किन्तु आसन नहीं करता, वह कछ हानियां भी उठाता है। ध्यान से पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है, अग्नि मंद हो जाती है इसलिए ध्यान के साथ आसन का होना अत्यन्त जरूरी है। संदर्भ : प्राणायाम विपश्यना में प्राणायाम का कोई स्थान नहीं है पर प्रेक्षाध्यान में प्राणायाम का बड़ा महत्त्व है। प्राणायाम प्राण-नियन्त्रण के लिए बहत आवश्यक है। जब तक प्राण पर नियन्त्रण नहीं होता तब तक चंचलता पर नियन्त्रण नहीं हो सकता। हठयोग में प्राणायाम को अतिरिक्त महत्त्व दिया गया है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में भी उसका पर्याप्त महत्त्व है। प्रेक्षाध्यान शिविरों में प्राणायाम का प्रयोग भी करवाया जाता है। सन्दर्भ : मौन विपश्यना में मौन का प्रयोग काफी कड़ाई से करवाया जाता है। उसमें दस दिन पूर्ण मौन का प्रयोग होता है। प्रेक्षाध्यान में मौन पर इतना बल नहीं दिया जाता। हम उसे अनिवार्य नहीं मानते। हम यह चाहते हैं-प्रेक्षाध्यान शिविर की एक ऐसी सामान्य पद्धति रहे, जिसे शिविर के बाद भी जीवन-भर जिया जा सके। मौन का एक-दो घंटे का प्रयोग सम्यक् रूप से हो सकता है पर निरन्तर दस दिन तक मौन रहना एक सामान्य आदमी के लिए समस्या है। प्रेक्षा शिविरों में यह निर्देश दिया जाता है - अनावश्यक बातचीत न करें, आवश्यकता होने पर ही बोलें। मौन करें तो उसका सही अर्थ में पालन करें। ऐसा न हो कि मौन भी करें और उसमें इतने इशारे, संकेत कर लें, जिससे मौन का भी उपहास हो जाए। विपश्यना के प्रकार विपश्यना के कई प्रकार हैं-आनापानसती, काय विपश्यना, धर्मानुपश्यना, वेदनानुपश्यना आदि। किन्तु वर्तमान में विपश्यना का जो क्रम चल रहा है, उसमें मुख्य रूप से दो प्रयोग करवाए जाते हैं-आनापानसती-श्वास-प्रश्वास को देखना और काय विपश्यना - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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