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है और जिस सिद्धान्त की आज सारे संसार को जरूरत है, उस सिद्धान्त को मानने वाले सोए हुए हैं। वे धर्म, जिनमें कोई क्षमता नहीं है, अपने धर्म को विश्व - धर्म बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं और जिस धर्म में विश्व - धर्म बनने की क्षमता है, उस धर्म के लोग अकर्मण्य बने हुए हैं, कोई प्रयत्न नहीं कर रहे हैं। जिस धर्म के पास अपरिग्रह और अनेकान्त जैसे सिद्धान्त हैं, उस धर्म को फैलाने का कोई प्रयत्न नहीं है - इस बात से मुझे इतनी वेदना एवं पीड़ा हुई कि रहा नहीं गया और आपको अपनी यह व्यथा सुनाने आ गया। युगीन परिप्रेक्ष्य में
भेद में छिपा अभेद
वस्तुतः जैन धर्म ने ऐसे सिद्धान्त दिए हैं, जो आज के युग के लिए जरूरी हैं। इस परमाणु और वैज्ञानिक युग में, शस्त्रीकरण, हिंसा और आतंक के युग में, आर्थिक विषमता और वैचारिक खींचातानी के युग में, इन सिद्धान्तों का मूल्य बहुत बढ़ गया है। हम जैन धर्म को समझें, साथ-साथ बौद्ध धर्म को समझें। दोनों भाई - भाई हैं और एक ही परम्परा की दो धाराएं हैं। दोनों दर्शनों के अध्ययन के बाद कोई ऐसा कार्यक्रम निर्धारित करें, जिसके द्वारा वर्तमान समस्याओं को समाधान की दिशा मिल सके। केवल तुलनात्मक अध्ययन ही न करें, अध्ययन के पश्चात् वर्तमान समस्याओं के समाधान में योग देने की स्थिति में आएं तो तुलनात्मक अध्ययन बहुत उपयोगी होगा, वर्तमान युग में एक नए सिद्धान्त और नई स्थापना का अवसर मिल सकेगा।
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