Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 113
________________ भेद में छिपा अभेद प्राग ऐतिहासिक काल में ऋग्वेद के अनुसार हिरण्यगर्भ भूत-जगत् का एक मात्र पति है।। किन्तु उससे यह स्पष्ट नहीं होता कि वह परमात्मा है या देहधारी? शंकराचार्य ने बृहदारण्यकोपनिषद् में ऐसी ही विप्रतिपत्ति उपस्थित की है। कई विद्वानों का कहना है कि परमात्मा ही हिरण्यगर्भ है और कई विद्वानों का कहना है कि वह संसारी है। यह संदेह हिरण्यगर्भ के मूल स्वरूप की जानकारी के अभाव में प्रचलित था। भाष्यकार सायण के अनुसार हिरण्यगर्भ देहधारी है। 3 आत्म-विद्या संन्यास आदि के प्रथम प्रवर्तक होने के कारण इस प्रकरण में हिरण्यगर्भ का अर्थ "ऋषभ' ही होना चाहिए। हिरण्यगर्भ उनका एक नाम भी रहा है। ऋषभ जब गर्भ में थे, तब कुबेर ने हिरण्य की वृष्टि की थी, इसलिए उन्हें हिरण्यगर्भ भी कहा गया। हिरण्यगर्भ सांख्य दर्शन में मान्य सगुण ईश्वर या पुरुष विशेष है इसलिए प्राग-ऐतिहासिक काल में ध्यान परंपरा का आदि बिन्दु भगवान ऋषभ, शैव और सांख्य पद्धति में खोजा जा सकता है। ध्यान : ऐतिहासिक काल में ऐतिहासिक काल में ध्यान परंपरा के स्रोत सांख्य, शैव, तंत्र, बौद्ध, जैन और नाथ संप्रदाय में उपलब्ध हैं। सांख्य दर्शन की साधना-पद्धति का अविकल रूप महर्षि पतंजलि के योग-दर्शन में मिलता है। वह ई.प. दुसरी शताब्दी की रचना है। पाणिनि के भाष्यकार, चरक के प्रति-संस्कर्ता और योग-दर्शन के कर्ता महर्षि पतंजलि एक ही व्यक्ति हैं। अतः उनका अस्तित्वकाल पाणिनी के बाद का है। मौर्य साम्राज्य का अस्तित्व ई.पू. ३२२ से १८६ तक माना जाता है। मौर्य-वंश का अंतिम राजा बृहद्रथ 1. ऋग्वेद, १०/१०/१२१/१ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स सदाधारपथिवीं द्यामतेमा कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 2. बृहदारण्यकोपनिषद्, १/४/६, भाष्य, प. १८५ : अत्र विप्रतिपद्यन्ते - पर एव हिरण्यगर्भ इत्येके। संसारीत्यपरे। 3. तैत्तिरीयारण्यक, प्रपाठक १०, अनवाक् ६२, मायण भाष्य। 4. महापुराण, १२/९५ सैषा हिरण्यमयी वष्टिः धनेशेन निपातिता। विभो! हिरण्यगर्भवमिव बोधयितुं जगत्।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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