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भेद में छिपा अभेद
अलग क्यों है? बौद्ध धर्म अलग क्यों है? अमक धर्म अमक धर्म से अलग क्यों है? इस प्रश्न का समाधान अभेद की नहीं, भेद की मीमांसा से निकलता है। अभेद को समझना जितना आवश्यक है उतना ही भेद को समझना आवश्यक है। स्थल दष्टि से, सतही तौर पर सब धर्म एक जैसे दिखाई देते हैं। सूक्ष्म मनीषा के द्वारा, एक वैचारिक मनीषा के द्वारा ही भेद को पकड़ा जा सकता है। प्रमाण शास्त्र है या पुरुष?
भेद की दिशा में जाएं तो सबसे पहले नाम पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। एक का नाम है वैदिक धर्म और एक का नाम है जैन धर्म। नाम में ही अंतर है। इसका तात्पर्य है - एक वह धर्म है, जो ग्रंथ को प्रमाण मानकर चलता है। एक वह धर्म है, जो पुरुष को प्रमाण मानकर चलता है। वेद ग्रंथों को प्रमाण मानकर चलने वाला धर्म है वैदिक धर्म। वहां कोई व्यक्ति प्रमाण नहीं हैं। वेद का कर्ता पुरुष नहीं है। इसका अर्थ है- वेद ईश्वर की वाणी है, ईश्वर का वचन है। वैदिक धर्म का अर्थ है- ईश्वरीय सत्ता या वेद को प्रमाण मानकर चलने वाला धर्म।
जैन धर्म 'जिन' को प्रमाण मानकर चलता है। 'जिन' कोई ईश्वरीय सत्ता नहीं है, कोई ग्रंथ नहीं है। जैन धर्म में ईश्वर का प्रामाण्य नहीं है, ग्रंथ का प्रामाण्य नहीं है। प्रामाण्य है परुष का। आप्त परुष जिन हैं। जो आप्त पुरुष है, वह प्रमाण है। जैन धर्म और वैदिक धर्म की मूल प्रकृति में पहला अन्तर है प्रमाण का। जैन धर्म के अनुसार प्रमाण शास्त्र नहीं है, प्रमाण है पुरुष। वैदिक धर्म के अनुसार पुरुष प्रमाण नहीं है, प्रमाण है वेद। वीतराग कौन? - भेद का दूसरा बिन्दु है वीतरागता। जैन धर्म मनुष्य को वीतराग मानता है। वैदिक धर्म मनुष्य को वीतराग नहीं मानता। वैदिक धर्म का सबसे निकट का प्रतिनिधि ग्रंथ है मीमांसा। वास्तव में वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड को लें तो वेदों के निकट संबंध वाला ग्रंथ है पूर्व मीमांसा। उपनिषद् का सारभूत दर्शन मानें तो उत्तर मीमांसा है वेद का प्रतिनिधि ग्रंथ। उसे धर्म कहने की अपेक्षा दर्शन कहना ज्यादा संगत है। न्याय
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