Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 45
________________ २८ भेद में छिपा अभेद प्राकृत में अनुवाद कर दिया गया है अथवा प्राकृत का संस्कृत में अनवाद कर दिया गया है। जैन साहित्य, बौद्ध साहित्य और महाभारत- तीनों को सामने रखें तो यह निर्णय करना कठिन होता है कि किससे किसने लिया। एक निष्कर्ष निकाला गया - शायद कछ बातें समान थीं, जिन्हें तीनों परंपराओं ने अपना लिया। जैसे लौकिक कहानियां चलती हैं। कहानी पर किसी का अधिकार नहीं होता। उस कहानी का उपयोग जैनों ने भी किया, बौद्धों ने भी किया और महाभारतकार ने भी किया। श्रमण साहित्य भी पुराना था। ऐसे भी कुछ पद्य हैं, जो संभवतः श्रमण साहित्य से लिए गए हैं। उस समय इतनी साम्प्रदायिकता नहीं थी। उस श्रमण साहित्य को जैनों ने भी अपनाया, बौद्धों ने भी अपनाया और महाभारतकार ने भी अपनाया। समत्व का दर्शन तुलनात्मक अध्ययन से अनेक समान बातें सामने आती हैं। जो व्यक्ति उत्तराध्ययन को पढ़ेगा, उसे वासी और चंदन - दोनों में समान रहने का दर्शन मिलेगा। उत्तराध्ययन में कहा गया - एक ओर चंदन से अर्चा हो रही है, दसरी ओर वसले से काटा जा रहा है। मनि इन दोनों अवस्थाओं में सम रहे। मुगापत्र कहता है - मैं ऐसा समता का जीवन जीना चाहता हूं, जिसमें वासी और चंदन - दोनों के प्रति समभाव रहे। यह समता का स्वर, श्रमण परंपरा का स्वर महाभारत में भी मिलता है। महाराज जनक कह रहे हैं - दो आदमी एक साथ मेरे पास आए। एक व्यक्ति के हाथ में था चंदन और दूसरे के हाथ में था वसूला। जिसके हाथ में चंदन था, वह मेरे दाएं हाथ पर चंदन लगा रहा है। जिसके हाथ में वसला था, वह बाएं हाथ को वसले से छिल रहा है। दाएं हाथ पर चंदन लगाने वाला और बाएं हाथ पर वसला चलाने वाला - दोनों मेरे लिए समान हैं। अध्यात्म की उच्च भूमिका यह बड़ी विचित्र बात है कि एक ही समय में चंदन से अर्चा हो रही है और वसूले से छिला जा रहा है। ऐसा नहीं कहा गया - कभी कोई आया, चंदन से अर्चा कर चला गया और कभी कोई आया. वसले से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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