________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रस्तावना
स्वीकार करने और खेती आदि की व्यवस्था भी भहारक देखने लगे थे । संवत् ५२६ में वज्रनन्दि ने द्राविड संघ की स्थापना की उस के ये ही मुख्य कारण थे ऐसा देवसेन ने कहा है । ' शक ६३४ में रविकीर्ति ने ऐहोळे ग्राम में जो मन्दिर बनवाया वह इस पद्धति का पर्याप्त पुराना उदाहरण है यद्यपि भूमिस्वीकार के उल्लेख इस से भी पहले के मिले हैं।
इन दो प्रथाओं के कारण भट्टारकों का स्वरूप साधुत्व से अधिक शासकत्व की ओर झुका और अन्त में यह प्रकट रूप से स्वीकार भी किया गया । वे अपने को राजगुरु कहलाते थे और राजा के समान ही पालकी, छत्र, चामर, गादी आदि का उपयोग करते थे। वस्त्रों में भी राजा के योग्य जरी आदि से सुशोभित वस्त्र रूट हुए थे । कमण्डलु और पिच्छी में सोने चांदी का उपयोग होने लगा था। यात्रा के समय राजा के समान ही सेवक सेविकाओं और गाडी घोडों का इंतजाम रखा जाता था तथा अपने अपने अधिकारक्षेत्र का रक्षण भी उसी आग्रह से किया जाता था। इसी कारण भट्टारकों का पट्टाभिषेक राज्याभिषेक की तरह बडी धूमधाम से होता था। इस के लिए पर्याप्त धन खर्च किया जाता था जो भक्त श्रावकों में से कोई एक करता था। इस राजवैभव की आकांक्षा ही भट्टारक पीठों की वृद्धि का एक प्रमुख कारण रही यद्यपि उन में तत्त्व की दृष्टि से कोई मतभेद होने का प्रसंग ही नहीं आया।
विभिन्न पिच्छियों का उपयोग विभिन्न परम्पराओं का प्रतीक रहा है । सेन गण और बलात्कार गण में मयूरपिच्छ का उपयोग होता था', लाडवागड गच्छ में चामर का पिच्छी जैसा उपयोग होता था, नन्दीतट गच्छ में भी यही प्रथा थी और माथुर गच्छ में कोई पिच्छी नहीं होती थी । इतिहास से ज्ञात होता है कि अन्यान्य आचार्यों ने चलाकपिच्छ और गृध्रपिच्छ का भी उपयोग किया है और उसे निन्दनीय नहीं माना गया किन्तु भट्टारक काल में अक्सर इस छोटी सी चीज को लेकर कटु शब्दों का प्रयोग होता रहा है ।
भष्टारकों के कार्य के विषय में अगले विभागों में चर्चा की गई है । उन के अतिरिक्त एक विशिष्ट रीति का उल्लेख कारंजा के भ. शान्तिसेन के विषय में हुआ
१ दर्शनसार २४.२८. २ मर्करा ताम्रपत्र आदि. ३ देखिए लेखांक ७२५. ४ देखिए लेखांक ६७२. ५ देखिए लेखांक ५१. ६ देखिए, लेखांक ६४३. ७ देखिए लेखांक ५४१. ८ जैनशिलालेख संग्रह भा. १ भूमिका पृ. १३१.
For Private And Personal Use Only