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प्रस्तावना
रूप से निर्णीत नहीं है। फिर भी ज्ञान की वर्तमान स्थिति में यह काफी तथ्यपूर्ण कही जा सकती है।
भद्रबाहु
अलि
लोहाचार्य
विनयन्धर (पुन्नाट गण ) (लाडवागड गच्छ)
माघनन्दि (मूलसंघ)
धरसेन (सेनसंघ)
पूज्यपाट देवनन्दि
वीरसेन
विनयसेन
वननन्दि (द्राविड संघ) (देशीय गण)
गुणनन्दि जिनसेन
(मूलसंघ) (बलात्कार गण) गुणभद्र
(सेनगण)
कुमारसेन
रामसेन (माथुर गच्छ)
नेमिषेण
(नन्दीतट गच्छ) उत्तरवर्ती सम्प्रदायों की पट्टावलियों से इस द्वितीय युग की परम्परा निश्चित करना सम्भव नहीं है क्यों कि उन में अन्य सम्प्रदायों के अच्छे आचार्यों को अपनी ही परम्परा का घोषित करने की प्रवृत्ति देखी जाती है। वीरनन्दि, मेघचन्द्र आदि देशीयगण के आचार्यों के नाम बलात्कार गण की पट्टावलियों में तथा जिनसेन, वीरसेन आदि सेनगण के आचार्यों के नाम लाडवागड गच्छ की पट्टावली में पाये जाते हैं यह इसी का परिणाम है। दूसरी चीज यह है कि पट्टावली लेखकों का समय इन आचार्यों के समय से बहुत बाद का है और इस लिए कितनी ही चमस्कारिक कथाएं उन के द्वारा विभिन्न आचार्यों के लिए गढ़ी गई हैं। पट्टावलियों में दिया हुआ उन का समय और क्रम भी इसी लिए विश्वासयोग्य नहीं है।
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