Book Title: Bhashya Trayam Author(s): Devendrasuri Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 8
________________ परस्पर के आंतरो में अंगुलिया डालकर कमल के नाल का आकार बनाकर पेट ऊपर कोणी स्थापनकर दो हाथ द्वारा बनी हुई आकार वाली मुद्रा, वह योग मुद्रा है ॥१५॥ चत्तारि अंगुलाई, पुरओ उणाईं जत्थ पच्छिमओ; पायाणं उस्सग्गो, एसा पुण होइ जिणमुद्दा ॥ १६ ॥ __और जिसमें दो पैर का अंतर आगे चार अंगुल और पीछे कुछ कम हो, वह जिनमुद्रा ॥१६॥ मुत्तासुत्ती मुद्दा, जत्थ समा दोवि गब्भिआ हत्था; ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गत्ति ॥ १७ ॥ ___ जिसमें दोनो हाथ गर्भित रखकर ललाट प्रदेश को स्पर्श किये हुए हो । कुछ आचार्यों के मत से ललाट का स्पर्श किए हुए न हों । उसे मुक्तासुक्ति मुद्रा कहते हैं ॥१७॥ पंचगो पणिवाओ, थयपाढो होइ जोगमुद्दाए; वंदण जिणमुद्दाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ॥ १८ ॥ ___पंचांग प्रणिपात और स्तवपाठ योगमुद्रा से वंदन जिनमुद्रा से और प्रणिधान मुक्तासुक्ति मुद्रा से होता है ॥१८॥ पणिहाणतिगं चेइअ-मुणिवंदण-पत्थणासरूवं वा; मण-वय-काएगत्तं, सेस-तियत्थो य पयडुत्ति ॥ १९ ॥ श्री चैत्यवंदन भाष्यPage Navigation
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